ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 45/ मन्त्र 6
उ॒त त्वं म॑घवञ्छृणु॒ यस्ते॒ वष्टि॑ व॒वक्षि॒ तत् । यद्वी॒ळया॑सि वी॒ळु तत् ॥
स्वर सहित पद पाठउ॒त । त्वम् । म॒घ॒ऽव॒न् । शृ॒णु॒ । यः । ते॒ । वष्टि॑ । व॒वक्षि॑ । तत् । यत् । वी॒ळया॑सि । वी॒ळु । तत् ॥
स्वर रहित मन्त्र
उत त्वं मघवञ्छृणु यस्ते वष्टि ववक्षि तत् । यद्वीळयासि वीळु तत् ॥
स्वर रहित पद पाठउत । त्वम् । मघऽवन् । शृणु । यः । ते । वष्टि । ववक्षि । तत् । यत् । वीळयासि । वीळु । तत् ॥ ८.४५.६
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 45; मन्त्र » 6
अष्टक » 6; अध्याय » 3; वर्ग » 43; मन्त्र » 1
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अष्टक » 6; अध्याय » 3; वर्ग » 43; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Now then, O lord of power, wealth and excellence, listen: Whoever asks of you something he desires, you bear and bring for him. Whoever you strengthen, he becomes strong. Are you not real mighty then?
मराठी (1)
भावार्थ
हे संपूर्ण वर्णन सिद्ध जितेंद्रिय आत्म्याचे आहे हे लक्षात ठेवले पाहिजे. याचा भाव असा आहे की, जर आत्मा वशमध्ये असेल व ईश्वरीय नियमाप्रमाणे वागणारा असेल तर त्याला कोणती वस्तू प्राप्त होत नाही. लोक आत्म्याला जाणत नाहीत त्यामुळे ते स्वत: दरिद्री राहतात. हे उपासकांनो! स्वत:च्या आत्म्याला ओळखा ॥६॥
संस्कृत (1)
विषयः
N/A
पदार्थः
उत=अपि च । हे मघवन् ! धनवन् आत्मन् ! त्वमिदं शृणु । ते=त्वत्तः । यद् वष्टि=कामयते । तत् त्वम् । ववक्षि=तस्मै तद् वहसि । त्वं यद् वस्तु । वीळयासि=दृढीकरोषि । तद्वीळु तद् दृढमेव सर्वत्र भवतीत्यर्थः ॥६ ॥
हिन्दी (4)
विषय
N/A
पदार्थ
(उत) और (मघवन्) हे धनसंयुक्त आत्मन् ! (त्वम्+शृणु) तू यह सुन (यत्) जो वस्तु (ते) तुझसे उपासक (वष्टि) चाहता है, (तत्) उस वस्तु को (ववक्षि) उसके लिये ले आता है, (यद्+वीळयासि) जिसको तू दृढ़ करता है (तत्+वीळु) वह दृढ़ ही होता है ॥६ ॥
भावार्थ
यह समस्त वर्णन सिद्ध जितेन्द्रिय आत्मा का है, यह ध्यान रखना चाहिये । भाव इसका यह है कि यदि आत्मा वश में हो और ईश्वरीय नियमवित् हो, तो उस आत्मा से कौन वस्तु प्राप्त नहीं होती । लोग आत्मा को नहीं जानते, अतः वे स्वयं दरिद्र बने रहते हैं । हे उपासको ! स्व आत्मा को पहिचानो ॥६ ॥
विषय
महारथी अग्नि, उसके कर्त्तव्य।
भावार्थ
हे ( मघवन् ) ऐश्वर्यवन् ! ( उत त्वं शृणु ) और तू श्रवण कर, (यः ते वष्टि) जो तुझ से किसी पदार्थ की कामना करे उसे तू ( तत् ववक्षि ) वह पदार्थ प्रदान कर। तू ( यद् वीडयासि ) जिसको बलवान् करे ( तत् वीडु ) वह सैन्य भी बलवान्, दृढ़ हो जावे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
त्रिशोकः काण्व ऋषिः॥ १ इन्द्राग्नी। २—४२ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—॥ १, ३—६, ८, ९, १२, १३, १५—२१, २३—२५, ३१, ३६, ३७, ३९—४२ गायत्री। २, १०, ११, १४, २२, २८—३०, ३३—३५ निचृद् गायत्री। २६, २७, ३२, ३८ विराड् गायत्री। ७ पादनिचृद् गायत्री॥
Bhajan
आज का वैदिक भजन 🙏 1179
ओ३म् उ॒त त्वं म॑घवञ्छृणु॒ यस्ते॒ वष्टि॑ व॒वक्षि॒ तत् ।
यद्वी॒ळया॑सि वी॒ळु तत् ॥
ऋग्वेद 8/45/6
प्रार्थना प्रार्थी की सुन
चरणों में ले ले
सबकी चारों ओर से
सुनता अकेले
प्रार्थना प्रार्थी की सुन
चरणों में ले ले
तू सभी शुभ कामनाएँ
पूर्ण करता
याचना सुन ले प्रभु
हों दूर अन्धेरे
सबकी चारों ओर से
सुनता अकेले
प्रार्थना प्रार्थी की सुन
चरणों में ले ले
तू जिसे चाहे
उसे पूर्ण दृढ़ बना दे
फिर उसे लगते नहीं
जग के थपेड़े
सबकी चारों ओर से
सुनता अकेले
प्रार्थना प्रार्थी की सुन
चरणों में ले ले
कोई शक्ति शत्रु
हावी हो ना सके
लाख दु:ख सताए
तो भी हंस के झेले
सबकी चारों ओर से
सुनता अकेले
प्रार्थना प्रार्थी की सुन
चरणों में ले ले
लोभ लालच भी
गिरा सकते नहीं
गर बना तू दृ़ढ़ मुझे
हे इन्द्र ! मेरे
सबकी चारों ओर से
सुनता अकेले
प्रार्थना प्रार्थी की सुन
चरणों में ले ले
तू अभेद्य अछेद्य
कर मुझे हे मघवन्!
मेरी जीत का भार
निज हाथों में ले ले
सबकी चारों ओर से
सुनता अकेले
प्रार्थना प्रार्थी की सुन
चरणों में ले ले
रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई
रचना दिनाँक :--
राग :- रागेश्री
गायन समय दिन का अंतिम प्रहर सूर्यास्त, ताल दादरा ६ मात्रा
शीर्षक :- हे मघवन् ! ७५७ वां भजन
*तर्ज :- *
00154-754
दृढ़ = मजबूत, पक्का
अभेद्य = जो टूटा ना जा सके
अछेद्य = जिसे छेदा ना जा सके
Vyakhya
प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित पूज्य श्री ललित साहनी जी का सन्देश :-- 👇👇
हे मघवन् !
हे भगवान तू मुझे भी सुन, तनिक मेरी प्रार्थना को सुन! तू तो प्रार्थना हो को ऐसा सुनने वाला है कि तुझसे प्रार्थी जो कुछ चाहता है, जो कामना करता है, उसे तू वह प्राप्त करा देता है। मैं जानता हूं, अच्छी तरह से जानता हूं कि तू मनुष्य को सब- कुछ देता है, उसके सब शुभ कामनाओं को पूर्ण कर देता है। फिर भी तू मेरी प्रार्थना को क्यों नहीं सुनता, इसे क्यों नहीं पूरा करता? हे इन्द्र! तू मुझे दृढ़ कर दे, शक्ति युक्त कर दे, पूरा समर्थ बना दे।
ओह! तू तो जिसे दिल करना चाहता है और दृढ़ बना देता है, वह पूरी तरह दृढ़ हो जाता है, अडिग हो जाता है। फिर उसे संसार की कोई शक्ति दवा नहीं सकती। वह अछेध्य,अभेद्य वह जाता है। इस संसार के हजारों शत्रु उसे हरा नहीं सकते, लाखों दुख- कलेश उसे डरा नहीं सकते, असंख्य प्रलोभन उसे गिरा नहीं सकते, वह पूर्ण 'वीळू'(दृढ़) हो जाता है। हे इन्द्र तू मुझे भी ऐसा दृढ़ बना दे, तू मेरी इस प्रार्थना सुन, मेरी इस कामना को पूर्ण कर।
🕉👏ईश भक्ति भजन
भगवान् ग्रुप द्वारा🌹 🙏
विषय
कामना की पूर्ति व बल की प्राप्ति
पदार्थ
[१] हे (मघवन्) = ऐश्वर्यशालिन् प्रभो ! (त्वं) = आप (उत शृणु) = हमारी प्रार्थना को अवश्य सुनिए। (यः) = जो स्तोता (ते वष्टि) = आपसे जिस वस्तु की कामना करता है, आप (तत् ववक्षि) = उस वस्तु को प्राप्त कराते हैं। [२] हे प्रभो ! (यत् वीडयासि) = जिसको भी आप शक्तिशाली बनाते हैं, (तत् वीडु) = वह दृढ़ शक्तिशाली होता ही है।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु प्रार्थना को सुनकर स्तोता की कामना को पूर्ण करते ही हैं। स्तोता को वे दृढ़ बनाते हैं।
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