अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 131/ मन्त्र 19
सूक्त -
देवता - प्रजापतिर्वरुणो वा
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
अत्य॑र्ध॒र्च प॑र॒स्वतः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअत्य॑र्ध॒र्च । प॑रस्व॒त॑: ॥१३१.१९॥
स्वर रहित मन्त्र
अत्यर्धर्च परस्वतः ॥
स्वर रहित पद पाठअत्यर्धर्च । परस्वत: ॥१३१.१९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 131; मन्त्र » 19
भाषार्थ -
হে শিষ্য! (পরস্বতঃ) দূর থেকেও দূরে অর্থাৎ দূর থেকেও দূর বস্তুর স্বামী যে পরমপুরুষ পরমেশ্বর উনার (অত্যর্ধর্চ) অত্যন্ত বর্ধিত হয়ে অর্চনা করো, স্তুতি করো।
- [অত্যর্ধর্চ=অতি+অর্ধ (ঋধ্ বৃদ্ধৌ)+অর্চ।]
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