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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 2/ मन्त्र 6
    ऋषिः - मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः देवता - इन्द्रवायू छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    वाय॒विन्द्र॑श्च सुन्व॒त आ या॑त॒मुप॑ निष्कृ॒तम्। म॒क्ष्वित्था धि॒या न॑रा॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वायो॒ इति॑ । इन्द्रः॑ । च॒ । सु॒न्व॒तः । आ । या॒त॒म् । उप॑ । निः॒ऽकृ॒तम् । म॒क्षु । इ॒त्था । धि॒या । न॒रा॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वायविन्द्रश्च सुन्वत आ यातमुप निष्कृतम्। मक्ष्वित्था धिया नरा॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वायो इति। इन्द्रः। च। सुन्वतः। आ। यातम्। उप। निःऽकृतम्। मक्षु। इत्था। धिया। नरा॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 6
    अष्टक » 1; अध्याय » 1; वर्ग » 4; मन्त्र » 1

    Meaning -
    Vayu and Indra, divine breath of life and divine light of intelligence, both divinities of nature, inspire the objects of creation with the sap of life. So do they invest the human being with spirit and intelligence and thus accomplish their creative yajna of evolution.

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