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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 2/ मन्त्र 5
    ऋषिः - मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः देवता - इन्द्रवायू छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    वाय॒विन्द्र॑श्च चेतथः सु॒तानां॑ वाजिनीवसू। तावा या॑त॒मुप॑ द्र॒वत्॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वायो॒ इति॑ । इन्द्रः॑ । च॒ । चे॒त॒थः॒ । सु॒ताना॑म् । वा॒जि॒नी॒व॒सू॒ इति॑ वाजिनीऽवसू । तौ । आ । या॒त॒म् । उप॑ । द्र॒वत् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वायविन्द्रश्च चेतथः सुतानां वाजिनीवसू। तावा यातमुप द्रवत्॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वायो इति। इन्द्रः। च। चेतथः। सुतानाम्। वाजिनीवसू इति वाजिनीऽवसू। तौ। आ। यातम्। उप। द्रवत्॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 5
    अष्टक » 1; अध्याय » 1; वर्ग » 3; मन्त्र » 5

    Meaning -
    Vayu and Indra, Lord’s powers of breath and light, you vitalise and illuminate the objects of creation with strength, energy and intelligence. Divinities of creation, come and inspire life and nature farther at the fastest.

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