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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 175 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 175/ मन्त्र 2
    ऋषिः - ऊर्ध्वग्रावार्बुदः देवता - ग्रावाणः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    ग्रावा॑णो॒ अप॑ दु॒च्छुना॒मप॑ सेधत दुर्म॒तिम् । उ॒स्राः क॑र्तन भेष॒जम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ग्रावा॑णः । अप॑ । दु॒च्छुना॑म् । अप॑ । से॒ध॒त॒ । दुः॒ऽम॒तिम् । उ॒स्राः । क॒र्त॒न॒ । भे॒ष॒जम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ग्रावाणो अप दुच्छुनामप सेधत दुर्मतिम् । उस्राः कर्तन भेषजम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ग्रावाणः । अप । दुच्छुनाम् । अप । सेधत । दुःऽमतिम् । उस्राः । कर्तन । भेषजम् ॥ १०.१७५.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 175; मन्त्र » 2
    अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 33; मन्त्र » 2

    Meaning -
    O Gravana, yajnic participants in state affairs, remove the evils of ignorance, injustice and poverty, stop and cast away nonsense, negativity and cynicism, and being generous and brilliant like rays of the sun, cure the ailments and distresses of society.

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