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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 97 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 97/ मन्त्र 3
    ऋषिः - भिषगाथर्वणः देवता - औषधीस्तुतिः छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    ओष॑धी॒: प्रति॑ मोदध्वं॒ पुष्प॑वतीः प्र॒सूव॑रीः । अश्वा॑ इव स॒जित्व॑रीर्वी॒रुध॑: पारयि॒ष्ण्व॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ओष॑धीः । प्रति॑ । मो॒द॒ध्व॒म् । पुष्प॑ऽवतीः । प्र॒ऽसूव॑रीः । अश्वाः॑ऽइव । स॒ऽजित्व॑रीः । वी॒रुधः॑ । पा॒र॒यि॒ष्ण्वः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ओषधी: प्रति मोदध्वं पुष्पवतीः प्रसूवरीः । अश्वा इव सजित्वरीर्वीरुध: पारयिष्ण्व: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ओषधीः । प्रति । मोदध्वम् । पुष्पऽवतीः । प्रऽसूवरीः । अश्वाःऽइव । सऽजित्वरीः । वीरुधः । पारयिष्ण्वः ॥ १०.९७.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 97; मन्त्र » 3
    अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 8; मन्त्र » 3

    Meaning -
    O herbs, plants and creepers ever growing, rise and rejoice in response to life’s health, blossoming and fragrant, procreative and fructifying, victorious like winsome life energy itself, taking us across all suffering and disease.

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