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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 29 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 29/ मन्त्र 15
    ऋषिः - गौरिवीतिः शाक्त्यः देवता - इन्द्र: छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    इन्द्र॒ ब्रह्म॑ क्रि॒यमा॑णा जुषस्व॒ या ते॑ शविष्ठ॒ नव्या॒ अक॑र्म। वस्त्रे॑व भ॒द्रा सुकृ॑ता वसू॒यू रथं॒ न धीरः॒ स्वपा॑ अतक्षम् ॥१५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑ । ब्रह्म॑ । क्रि॒यमा॑णा । जु॒ष॒स्व॒ । या । ते॒ । श॒वि॒ष्ठ॒ । नव्याः॑ । अक॑र्म । वस्त्रा॑ऽइव । भ॒द्रा । सुऽकृ॑ता । व॒सु॒ऽयुः । रथ॑म् । न । धीरः॑ । सु॒ऽअपाः॑ । अ॒त॒क्ष॒म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्र ब्रह्म क्रियमाणा जुषस्व या ते शविष्ठ नव्या अकर्म। वस्त्रेव भद्रा सुकृता वसूयू रथं न धीरः स्वपा अतक्षम् ॥१५॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्र। ब्रह्म। क्रियमाणा। जुषस्व। या। ते। शविष्ठ। नव्याः। अकर्म। वस्त्राऽइव। भद्रा। सुऽकृता। वसुऽयुः। रथम्। न। धीरः। सुऽअपाः। अतक्षम् ॥१५॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 29; मन्त्र » 15
    अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 25; मन्त्र » 5

    Meaning -
    Indra, the holy chant and homage of gifts, newest and latest, being offered, graciously accept and cherish, which, for you, O lord most powerful, we have created. Like a beautiful dress of thought and devotion, I, a sincere artist in pursuit of life’s wealth and peace and a steadfast and skilful maker, have designed and created the song like a chariot.

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