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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 54 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 54/ मन्त्र 1
    ऋषिः - श्यावाश्व आत्रेयः देवता - मरुतः छन्दः - विराडुष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    प्र शर्धा॑य॒ मारु॑ताय॒ स्वभा॑नव इ॒मां वाच॑मनजा पर्वत॒च्युते॑। घ॒र्म॒स्तुभे॑ दि॒व आ पृ॑ष्ठ॒यज्व॑ने द्यु॒म्नश्र॑वसे॒ महि॑ नृ॒म्णम॑र्चत ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । शर्धा॑य । मारु॑ताय । स्वऽभा॑नवः । इ॒माम् । वाच॑म् । अ॒न॒ज॒ । प॒र्व॒त॒ऽच्युते॑ । घ॒र्म॒ऽस्तुभे॑ । दि॒वः । आ । पृ॒ष्ठ॒ऽयज्व॑ने । द्यु॒म्नऽश्र॑वसे । महि॑ । नृ॒म्णम् । अ॒र्च॒त॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र शर्धाय मारुताय स्वभानव इमां वाचमनजा पर्वतच्युते। घर्मस्तुभे दिव आ पृष्ठयज्वने द्युम्नश्रवसे महि नृम्णमर्चत ॥१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र। शर्धाय। मारुताय। स्वऽभानवे। इमाम्। वाचम्। अनज। पर्वतऽच्युते। घर्मऽस्तुभे दिवः। आ। पृष्ठऽयज्वने। द्युम्नऽश्रवसे। महि। नृम्णम्। अर्चत ॥१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 54; मन्त्र » 1
    अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 14; मन्त्र » 1

    Meaning -
    For the self-refulgent force and power of the Maruts, leading lights of humanity, offer this song of adoration. And for the renowned yajaka who lights and feeds the fire to adore the divinities of nature through yajna on the heights, moves the clouds and brings the showers, offer gifts of human wealth of high value with songs of praise and appreciation. Loving scholars value the gifts of divinity from the lights of heaven.

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