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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 15 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 15/ मन्त्र 2
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    यः पञ्च॑ चर्ष॒णीर॒भि नि॑ष॒साद॒ दमे॑दमे। क॒विर्गृ॒हप॑ति॒र्युवा॑ ॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः । पञ्च॑ । च॒र्ष॒णीः । अ॒भि । नि॒ऽस॒साद॑ । दमे॑ऽदमे । क॒विः । गृ॒हऽप॑तिः । युवा॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यः पञ्च चर्षणीरभि निषसाद दमेदमे। कविर्गृहपतिर्युवा ॥२॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यः। पञ्च। चर्षणीः। अभि। निऽससाद। दमेऽदमे। कविः। गृहऽपतिः। युवा ॥२॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 15; मन्त्र » 2
    अष्टक » 5; अध्याय » 2; वर्ग » 18; मन्त्र » 2

    Meaning -
    To Agni, who abides with and stabilises the five orders of society in every household from door to door, the wise visionary, master protector and promoter of the home and family, youthful spirit and power of the light and fire of life and pranic energy.

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