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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 25 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 25/ मन्त्र 5
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    कुत्सा॑ ए॒ते हर्य॑श्वाय शू॒षमिन्द्रे॒ सहो॑ दे॒वजू॑तमिया॒नाः। स॒त्रा कृ॑धि सु॒हना॑ शूर वृ॒त्रा व॒यं तरु॑त्राः सनुयाम॒ वाज॑म् ॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कुत्सा॑ । ए॒ते । हर्यि॑ऽअश्वाय । शू॒षम् । इन्द्रे॑ । सहः॑ । दे॒वऽजू॑तम् । इ॒या॒नाः । स॒त्रा । कृ॒धि॒ । सु॒ऽहना॑ । शू॒र॒ । वृ॒त्रा । व॒यम् । तरु॑त्राः । स॒नु॒या॒म॒ । वाज॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कुत्सा एते हर्यश्वाय शूषमिन्द्रे सहो देवजूतमियानाः। सत्रा कृधि सुहना शूर वृत्रा वयं तरुत्राः सनुयाम वाजम् ॥५॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कुत्सा। एते। हर्यिऽअश्वाय। शूषम्। इन्द्रे। सहः। देवऽजूतम्। इयानाः। सत्रा। कृधि। सुऽहना। शूर। वृत्रा। वयम्। तरुत्राः। सनुयाम। वाजम् ॥५॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 25; मन्त्र » 5
    अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 9; मन्त्र » 5

    Meaning -
    All these arms and armaments of thunder power, all the sagely people who have come to peace and power, patience and fortitude inspired by divinities for the attainment of honour and excellence: all these are dedicated to Indra, lord ruler of vibrant powers and people of the world. O lord giver of freedom from fear and violence, make it easy for us to dispel the evil and darkness of life. Let us be victors of light over ignorance and darkness and cross over the seas to the realms of bliss.

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