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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 23/ मन्त्र 28
    ऋषिः - विश्वमना वैयश्वः देवता - अग्निः छन्दः - पादनिचृदुष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    त्वं व॑रो सु॒षाम्णेऽग्ने॒ जना॑य चोदय । सदा॑ वसो रा॒तिं य॑विष्ठ॒ शश्व॑ते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम् । व॒रो॒ इति॑ । सु॒ऽषाम्णे॑ । अग्ने॑ । जना॑य । चो॒द॒य॒ । सदा॑ । व॒सो॒ इति॑ । रा॒तिम् । य॒वि॒ष्ठ॒ । शश्व॑ते ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वं वरो सुषाम्णेऽग्ने जनाय चोदय । सदा वसो रातिं यविष्ठ शश्वते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम् । वरो इति । सुऽषाम्णे । अग्ने । जनाय । चोदय । सदा । वसो इति । रातिम् । यविष्ठ । शश्वते ॥ ८.२३.२८

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 23; मन्त्र » 28
    अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 14; मन्त्र » 3

    Meaning -
    Agni, most youthful light and life of existence, worthy of the first order of love and reverence for us, pray grant your gracious favours of wealth and generosity to mankind. Lord giver of wealth and peace and comfort of a settled life, inspire the celebrants through continuous generations to sing songs of gratitude for your generosity.

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