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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 28 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 28/ मन्त्र 4
    ऋषिः - प्रियमेधः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    ए॒ष वृषा॒ कनि॑क्रदद्द॒शभि॑र्जा॒मिभि॑र्य॒तः । अ॒भि द्रोणा॑नि धावति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒षः । वृषा॑ । कनि॑क्रदत् । द॒शऽभिः॑ । जा॒मिऽभिः॑ । य॒तः । अ॒भि । द्रोणा॑नि । धा॒व॒ति॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एष वृषा कनिक्रदद्दशभिर्जामिभिर्यतः । अभि द्रोणानि धावति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एषः । वृषा । कनिक्रदत् । दशऽभिः । जामिऽभिः । यतः । अभि । द्रोणानि । धावति ॥ ९.२८.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 28; मन्त्र » 4
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 18; मन्त्र » 4

    Meaning -
    This omnificent shower of generous divinity vibrating by the dynamics of Prakrti and her tenfold mode of subtle and gross elements proclaims its presence loud and bold in beauteous forms of mutations and manifestations of nature in the universe.

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