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  • यजुर्वेद - अध्याय 14/ मन्त्र 7
    ऋषिः - विश्वेदेवा ऋषयः देवता - वस्वादयो मन्त्रोक्ता देवताः छन्दः - भुरिक्पङ्क्तिः,स्वराट्पक्तिः,निचृदाकृतुश् स्वरः - धैवतः,पञ्चमः
    6

    स॒जूर्ऋ॒तुभिः॑ स॒जूर्वि॒धाभिः॑ स॒जूर्दे॒वैः स॒जूर्दे॒वैर्व॑योना॒धैर॒ग्नये॑ त्वा वैश्वान॒राया॒श्विना॑ध्व॒र्यू सा॑दयतामि॒ह त्वा॑ स॒जूर्ऋ॒तुभिः॑ स॒जूर्वि॒धाभिः॑ स॒जूर्वसु॑भिः स॒जूर्दे॒वैर्व॑योना॒धैर॒ग्नये॑ त्वा वैश्वान॒राया॒श्विना॑ऽध्व॒र्यू सा॑दयतामि॒ह त्वा॑ स॒जूर्ऋ॒तुभिः॑ स॒जूर्वि॒धाभिः॑ स॒जू रु॒द्रैः स॒जूर्दे॒वैर्व॑योना॒धैर॒ग्नये॑ त्वा वैश्वान॒राया॒श्विना॑ध्व॒र्यू सा॑दयतामि॒ह त्वा॑ स॒जूर्ऋ॒तुभिः॑ स॒जूर्वि॒धाभिः॑ स॒जूरा॑दि॒त्यैः स॒जूर्दे॒वैर्व॑योना॒धैर॒ग्नये॑ त्वा वैश्वान॒राया॒श्विना॑ध्व॒र्यू सा॑दयतामि॒ह त्वा॑ स॒जूर्ऋ॒तुभिः॑ स॒जूर्वि॒धाभिः॑ स॒जूर्वि॒श्वै॑र्दे॒वैः स॒जूर्दे॒वैर्व॑योना॒धैर॒ग्नये॑ त्वा वैश्वान॒राया॒श्विना॑ध्व॒र्यू सा॑दयतामि॒ह त्वा॑॥७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒जूरिति॑ स॒ऽजूः। ऋ॒तुभि॒रित्यृ॒तुऽभिः॑। स॒जूरिति॑ स॒ऽजूः। वि॒धाभि॒रिति॑ वि॒ऽधाभिः॑। स॒जूरिति॑ स॒ऽजूः। दे॒वैः। स॒जूरिति॑ स॒ऽजूः। दे॒वैः। व॒यो॒ना॒धैरिति॑ वयःऽना॒धैः। अ॒ग्नये॑। त्वा॒। वै॒श्वा॒न॒राय॑। अ॒श्विना॑। अ॒ध्व॒र्यूऽइत्य॑ध्व॒र्यू। सा॒द॒य॒ता॒म्। इ॒ह। त्वा॒। स॒जूरिति॑ स॒ऽजूः। ऋ॒तुभि॒रित्यृ॒तुऽभिः॑। स॒जूरिति॑ स॒ऽजूः। वि॒धाभि॒रिति॑ वि॒ऽधाभिः॑। स॒जूरिति॑ स॒ऽजूः। वसु॑भि॒रिति॒ वसु॑ऽभिः। स॒जूरिति॑ स॒ऽजूः। दे॒वैः। व॒यो॒ना॒धैरिति॑ वयःऽना॒धैः। अ॒ग्नये॑। त्वा॒। वै॒श्वा॒न॒राय॑। अ॒श्विना॑। अ॒ध्व॒र्यूऽइत्य॑ध्व॒र्यू सा॒द॒य॒ता॒म्। इ॒ह। त्वा॒। स॒जूरिति॑ स॒ऽजूः। ऋ॒तुभि॒रित्यृ॒तुऽभिः॑। स॒जूरिति॑ स॒ऽजूः। वि॒धाभि॒रिति॑ वि॒ऽधाभिः॑। स॒जूरिति॑ स॒ऽजूः। रु॒द्रैः। स॒जूरिति॑ स॒ऽजूः। दे॒वैः। व॒यो॒ना॒धैरिति॑ वयःऽना॒धैः। अ॒ग्नये॑। त्वा॒। वै॒श्वा॒न॒राय॑। अ॒श्विना॑। अ॒ध्व॒र्यूऽइत्य॑ध्व॒र्यू। सा॒द॒य॒ता॒म्। इ॒ह। त्वा॒। स॒जूरिति॑ स॒ऽजूः। ऋ॒तुभि॒रित्यृ॒तुऽभिः॑। स॒जूरिति॑ स॒ऽजूः। वि॒धाभि॒रिति॑ वि॒ऽधाभिः॑। स॒जूरिति॑ स॒ऽजूः। आ॒दि॒त्यैः। स॒जूरिति॑ स॒ऽजूः। दे॒वैः। व॒यो॒ना॒धैरिति॑ वयःऽना॒धैः। अ॒ग्नये॑। त्वा॒। वै॒श्वा॒न॒राय॑। अ॒श्विना॑। अ॒ध्व॒र्यूऽइत्य॑ध्व॒र्यू। सा॒द॒य॒ता॒म्। इ॒ह। त्वा॒। स॒जूरिति॑ स॒ऽजूः। ऋ॒तुभि॒रित्यृ॒तुऽभिः॑। स॒जूरिति॑ स॒ऽजूः। वि॒धाभि॒रिति॑ वि॒ऽधाभिः॑। स॒जूरिति॑ स॒ऽजूः। विश्वैः॑। दे॒वैः। स॒जूरिति॑ स॒ऽजूः। दे॒वैः। व॒यो॒ना॒धैरिति॑ वयःऽना॒धैः। अ॒ग्नये॑। त्वा॒। वै॒श्वा॒न॒राय॑। अ॒श्विना॑। अ॒ध्व॒र्यूऽइत्य॑ध्व॒र्यू। सा॒द॒य॒ता॒म्। इ॒ह। त्वा॒ ॥७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सजूरृतुभिः सजूर्विधाभिः सजूर्देवैः सजूर्देवैर्वयोनाधैरग्नये त्वा वैश्वानरायाश्विनाध्वर्यू सादयतामिह त्वा सजूरृतुभिः सजूर्विधाभिः सजूर्वसुभिः सजूर्देवैर्वयोनाधैरग्नये त्वा वैश्वानरायाश्विनाध्वर्यू सादयतामिह त्वा सजूरृतुभिः सजूर्विधाभिः सजू रुद्रैः सजूर्देवैर्वयोनाधैरग्नये त्वा वैश्वानरायाश्विनाध्वर्यू सादयतामिह त्वा सजूरृतुभिः सजूर्विधाभिः सजूरादित्यैः सजूर्देवैर्वयोनाधैरग्नये त्वा वैश्वानरायाश्विनाध्वर्यू सादयतामिह त्वा सजूरृतुभिः सजूर्विधाभिः सजूर्विश्वैर्देवैः सजूर्देवैर्वयोनाधैरग्नये त्वा वैश्वानरायाश्विनाध्वर्यू सादयतामिह त्वा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सजूरिति सऽजूः। ऋतुभिरित्यृतुऽभिः। सजूरिति सऽजूः। विधाभिरिति विऽधाभिः। सजूरिति सऽजूः। देवैः। सजूरिति सऽजूः। देवैः। वयोनाधैरिति वयःऽनाधैः। अग्नये। त्वा। वैश्वानराय। अश्विना। अध्वर्यूऽइत्यध्वर्यू। सादयताम्। इह। त्वा। सजूरिति सऽजूः। ऋतुभिरित्यृतुऽभिः। सजूरिति सऽजूः। विधाभिरिति विऽधाभिः। सजूरिति सऽजूः। वसुभिरिति वसुऽभिः। सजूरिति सऽजूः। देवैः। वयोनाधैरिति वयःऽनाधैः। अग्नये। त्वा। वैश्वानराय। अश्विना। अध्वर्यूऽइत्यध्वर्यू सादयताम्। इह। त्वा। सजूरिति सऽजूः। ऋतुभिरित्यृतुऽभिः। सजूरिति सऽजूः। विधाभिरिति विऽधाभिः। सजूरिति सऽजूः। रुद्रैः। सजूरिति सऽजूः। देवैः। वयोनाधैरिति वयःऽनाधैः। अग्नये। त्वा। वैश्वानराय। अश्विना। अध्वर्यूऽइत्यध्वर्यू। सादयताम्। इह। त्वा। सजूरिति सऽजूः। ऋतुभिरित्यृतुऽभिः। सजूरिति सऽजूः। विधाभिरिति विऽधाभिः। सजूरिति सऽजूः। आदित्यैः। सजूरिति सऽजूः। देवैः। वयोनाधैरिति वयःऽनाधैः। अग्नये। त्वा। वैश्वानराय। अश्विना। अध्वर्यूऽइत्यध्वर्यू। सादयताम्। इह। त्वा। सजूरिति सऽजूः। ऋतुभिरित्यृतुऽभिः। सजूरिति सऽजूः। विधाभिरिति विऽधाभिः। सजूरिति सऽजूः। विश्वैः। देवैः। सजूरिति सऽजूः। देवैः। वयोनाधैरिति वयःऽनाधैः। अग्नये। त्वा। वैश्वानराय। अश्विना। अध्वर्यूऽइत्यध्वर्यू। सादयताम्। इह। त्वा॥७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 14; मन्त्र » 7
    Acknowledgment

    पदार्थ -
    हे स्त्रि वा पुरुष! जिस (त्वा) तुझ को (इह) इस जगत् में (अध्वर्यू) रक्षा करने हारे (अश्विना) सब विद्याओं में व्यापक पढ़ाने और उपदेश करने वाले पुरुष और स्त्री (वैश्वानराय) सम्पूर्ण पदार्थों की प्राप्ति के निमित्त (अग्नये) अग्नि विद्या के लिये (सादयताम्) नियुक्त करें और हम लोग भी जिस (त्वा) तुझ को स्थापित करें सो तू (ऋतुभिः) वसन्त और वर्षा आदि ऋतुओं के साथ (सजूः) एक सी तृप्ति वा सेवा से युक्त (विधाभिः) जलों के साथ (सजूः) प्रीतियुक्त (देवैः) अच्छे गुणों के साथ (सजूः) प्रीतिवाली वा प्रीति वाला और (वयोनाधैः) जीवन आदि वा गायत्री आदि छन्दों के साथ सम्बन्ध के हेतु (देवैः) दिव्य सुख देने हारे प्राणों के साथ (सजूः) समान सेवन से युक्त हो। हे पुरुषार्थयुक्त स्त्रि वा पुरुष! जिस (त्वा) तुझ को (इह) इस गृहाश्रम में (वैश्वानराय) सब जगत् के नायक (अग्नये) विज्ञानदाता ईश्वर की प्राप्ति के लिये (अध्वर्यू) रक्षक (अश्विना) सब विद्याओं में व्याप्त अध्यापक और उपदेशक (सादयताम्) स्थापित करें और जिस (त्वा) तुझको हम लोग नियत करें सो तू (ऋतुभिः) ऋतुओं के साथ (सजूः) पुरुषार्थी (विधाभिः) विविध प्रकार के पदार्थों के धारण के हेतु प्राणों की चेष्टाओं के साथ (सजूः) समान सेवन वाले (वसुभिः) अग्नि आदि आठ पदार्थों के साथ (सजूः) प्रीतियुक्त और (वयोनाधैः) विज्ञान का सम्बन्ध कराने हारे (देवैः) सुन्दर विद्वानों के साथ (सजूः) समान प्रीति वाले हों। हे विद्या पढ़ने के लिये प्रवृत्त हुए ब्रह्मचारिणी वा ब्रह्मचारी! जिस (त्वा) तुझ को (इह) इस ब्रह्मचर्य्याश्रम में (वैश्वानराय) सब मनुष्यों के सुख के साधन (अग्नये) शास्त्रों के विज्ञान के लिये (अध्वर्यू) पालने हारे (अश्विना) पूर्ण विद्यायुक्त अध्यापक और उपदेशक लोग (सादयताम्) नियुक्त करें और जिस (त्वा) तुझ को हम लोग स्थापित करें सो तू (ऋतुभिः) ऋतुओं के साथ (सजूः) अनुकूल सेवन वाले (विधाभिः) विविध प्रकार के पदार्थों के धारण के निमित्त प्राण की चेष्टाओं से (सजूः) समान प्रीति वाले (रुद्रैः) प्राण, अपान, व्यान उदान, समान, नाग, कूर्म, कृकल, देवदत्त, धनञ्जय और जीवात्मा इन ग्यारहों के (सजूः) अनुसार सेवा करने हारे और (वयोनाधैः) वेदादि शास्त्रों के जनाने का प्रबन्ध करनेहारे (देवैः) विद्वानों के साथ (सजूः) बराबर प्रीति वाले हों। हे पूर्णविद्या वाले स्त्री वा पुरुष! जिस (त्वा) तुझ को (इह) इस संसार में (वैश्वानराय) सब मनुष्यों के लिये पूर्ण सुख के साथ (अग्नये) पूर्ण विज्ञान के लिये (अध्वर्यू) रक्षक (अश्विना) शीघ्र ज्ञानदाता लोग (सादयताम्) नियत करें और जिस (त्वा) तुझ को हम नियुक्त करें सो तू (ऋतुभिः) ऋतुओं के साथ (सजूः) अनुकूल आचरण वाले (विधाभिः) विविध प्रकार की सत्यक्रियाओं के साथ (सजूः) समान प्रीति वाले (आदित्यैः) वर्ष के बारह महीनों के साथ (सजूः) अनुकूल आहारविहारयुक्त और (वयोनाधैः) पूर्ण विद्या के विज्ञान और प्रचार के प्रबन्ध करने हारे (देवैः) पूर्ण विद्यायुक्त विद्वानों के (सजूः) अनुकूल प्रीति वाले हों। हे सत्य अर्थों का उपदेश करने हारी स्त्री वा पुरुष! जिस (त्वा) तुझ को (इह) इस जगत् में (वैश्वानराय) सब मनुष्यों के हितकारी (अग्नये) अच्छे शिक्षा के प्रकाश के लिये (अध्वर्यू) ब्रह्मविद्या के रक्षक (अश्विना) शीघ्र पढ़ाने और उपदेश करनेहारे लोग (सादयताम्) स्थित करें और जिस (त्वा) तुझ को हम लोग नियत करें सो तू (ऋतुभिः) काल क्षण आदि सब अवयवों के साथ (सजूः) अनुकूल सेवी (विधाभिः) सुखों में व्यापक सब क्रियाओं के (सजूः) अनुसार होकर (विश्वैः) सब (देवैः) सत्योपदेशक पतियों के साथ (सजूः) समान प्रीति वाले और (वयोनाधैः) कामयमान जीवन का सम्बन्ध करानेहारे (देवैः) परोपकार के लिये सत्य असत्य के जनाने वाले जनों के साथ (सजूः) समान प्रीति वाले हों॥७॥

    भावार्थ - इस संसार में मनुष्य का जन्म पाके स्त्री तथा पुरुष विद्वान् होकर जिन ब्रह्मचर्य्य-सेवन, विद्या और अच्छी शिक्षा के ग्रहण आदि शुभ-गुण, कर्मों में आप प्रवृत्त होकर जिन अन्य लोगों को प्रवृत्त करें, वे उन में प्रवृत्त होकर परमेश्वर से लेके पृथिवीपर्यन्त पदार्थों के यथार्थ विज्ञान से उपयोग ग्रहण करके सब ऋतुओं में आप सुखी रहें और अन्यों को सुखी करें॥७॥

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