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  • यजुर्वेद - अध्याय 9/ मन्त्र 22
    ऋषिः - वसिष्ठ ऋषिः देवता - दिशो देवताः छन्दः - निचृत् अत्यष्टि, स्वरः - गान्धारः
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    अ॒स्मे वो॑ऽअस्त्विन्द्रि॒यम॒स्मे नृ॒म्णमु॒त क्रतु॑र॒स्मे वर्चा॑सि सन्तु वः। नमो॑ मा॒त्रे पृ॑थि॒व्यै नमो॑ मा॒त्रे पृ॑थि॒व्याऽइ॒यं ते॒ राड्य॒न्तासि॒ यम॑नो ध्रु॒वोऽसि ध॒रुणः॑। कृ॒ष्यै त्वा॒ क्षेमाय॑ त्वा र॒य्यै त्वा॒ पोषा॑य त्वा॥२२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒स्मेऽइत्य॒स्मे। वः। अ॒स्तु॒। इ॒न्द्रि॒यम्। अ॒स्मेऽइत्य॒स्मे। नृ॒म्णम्। उ॒त। क्रतुः॑। अ॒स्मेऽइत्य॒स्मे। वर्चा॑सि। स॒न्तु॒। वः॒। नमः॑। मा॒त्रे। पृ॒थि॒व्यै। नमः॑। मा॒त्रे। पृ॒थि॒व्यै। इ॒यम्। ते॒। राट्। य॒न्ता। अ॒सि॒। यम॑नः। ध्रु॒वः। अ॒सि॒। ध॒रुणः॑। कृ॒ष्यै। त्वा॒। क्षेमा॑य। त्वा॒। र॒य्यै। त्वा॒। पोषा॑य। त्वा॒ ॥२२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अस्मे वोऽअस्त्विन्द्रियमस्मे नृम्णमुत क्रतुरस्मे वर्चाँसि सन्तु वः । नमो मात्रे पृथिव्यै नमो मात्रे पृथिव्यैऽइयन्ते राड् यन्तासि यमनो धु्रवो सि धरुणः कृष्यै त्वा क्षेमाय त्वा रय्यै त्वा पोषाय त्वा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अस्मेऽइत्यस्मे। वः। अस्तु। इन्द्रियम्। अस्मेऽइत्यस्मे। नृम्णम्। उत। क्रतुः। अस्मेऽइत्यस्मे। वर्चासि। सन्तु। वः। नमः। मात्रे। पृथिव्यै। नमः। मात्रे। पृथिव्यै। इयम्। ते। राट्। यन्ता। असि। यमनः। ध्रुवः। असि। धरुणः। कृष्यै। त्वा। क्षेमाय। त्वा। रय्यै। त्वा। पोषाय। त्वा॥२२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 9; मन्त्र » 22
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    Meaning -
    I enjoin thee for agriculture, advancement, wealth, and prosperity. Thou art persevering, law-abiding, preserving and eminent. May food grains be produced from this venerable Earth. May the worthy science of geology be studied, and water and food grains produced thereby from the Earth. May our physical force, wealth, wisdom, and knowledge be for your service.

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