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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1012
ऋषिः - कृतयशा आङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - काकुभः प्रगाथः (विषमा ककुप्, समा सतोबृहती)
स्वरः - पञ्चमः
काण्ड नाम -
6
आ꣡ व꣢च्यस्व सुदक्ष च꣣꣬म्वोः꣢꣯ सु꣣तो꣢ वि꣣शां꣢꣫ वह्नि꣣र्न꣢ वि꣣श्प꣡तिः꣢ । वृ꣣ष्टिं꣢ दि꣣वः꣡ प꣢वस्व री꣣ति꣢म꣣पो꣢꣫ जिन्व꣣न्ग꣡वि꣢ष्टये꣣ धि꣡यः꣢ ॥१०१२॥
स्वर सहित पद पाठआ꣢ । व꣣च्यस्व । सुदक्ष । सु । दक्ष । चम्वोः । सु꣣तः꣢ । वि꣣शा꣢म् । व꣡ह्निः꣢꣯ । न । वि꣣श्प꣡तिः꣢ । वृ꣣ष्टि꣢म् । दि꣣वः꣢ । प꣣वस्व । रीति꣢म् । अ꣣पः꣢ । जि꣡न्व꣢꣯न् । ग꣡वि꣢꣯ष्टये । गो । इ꣣ष्टये । धि꣡यः꣢꣯ ॥१०१२॥
स्वर रहित मन्त्र
आ वच्यस्व सुदक्ष चम्वोः सुतो विशां वह्निर्न विश्पतिः । वृष्टिं दिवः पवस्व रीतिमपो जिन्वन्गविष्टये धियः ॥१०१२॥
स्वर रहित पद पाठ
आ । वच्यस्व । सुदक्ष । सु । दक्ष । चम्वोः । सुतः । विशाम् । वह्निः । न । विश्पतिः । वृष्टिम् । दिवः । पवस्व । रीतिम् । अपः । जिन्वन् । गविष्टये । गो । इष्टये । धियः ॥१०१२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1012
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 17; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 6; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 17; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 6; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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विषय - अगले मन्त्र में फिर आचार्य को कहा जा रहा है।
पदार्थ -
हे (सुदक्ष) शुभ योगबल से युक्त आचार्यप्रवर ! (चम्वोः) द्यावापृथिवी के तुल्य परा और अपरा विद्याओं में (सुतः) निष्णात आप (विशाम्) प्रजाओं के (वह्नि) भार को उठानेवाले (विश्पतिः न) प्रजापालक राजा के समान (आ वच्यस्व) प्रशंसा प्राप्त कीजिए, (गविष्टये) दिव्य प्रकाश के इच्छुक मुझ शिष्य के लिए (धियः) प्रज्ञानों को (जिन्वन्) प्रेरित करते हुए आप (दिवः) मूर्धा-लोक से (वृष्टिम्) धर्ममेघ समाधि में होनेवाली ज्योति की वर्षा को और (अपः) आनन्द-जल की (रीतिम्) धारा को (पवस्व) प्रवाहित कीजिए ॥२॥ यहाँ उपमालङ्कार है ॥२॥
भावार्थ - योगविद्या में पारङ्गत आचार्य भौतिक विज्ञानों के पाण्डित्य के साथ-साथ योगविद्या का पाण्डित्य भी शिष्यों में उत्पन्न करता हुआ उनके सम्मुख मानो दिव्य ज्योति एवं ब्रह्मानन्द की धारा को प्रवाहित कर देता है ॥२॥
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