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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 102
ऋषिः - इरिम्बिठिः काण्वः
देवता - अदितिः
छन्दः - उष्णिक्
स्वरः - ऋषभः
काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
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उ꣣त꣢꣫ स्या नो꣣ दि꣡वा꣢ म꣣ति꣡रदि꣢꣯तिरू꣣त्या꣡ग꣢मत् । सा꣡ शन्ता꣢꣯ता꣣ म꣡य꣢स्कर꣣द꣢प꣣ स्रि꣣धः꣢ ॥१०२॥
स्वर सहित पद पाठउ꣣त꣢ । स्या । नः꣣ । दि꣡वा꣢꣯ । म꣣तिः꣢ । अ꣡दि꣢꣯तिः । अ । दि꣣तिः । ऊत्या꣢ । आ । ग꣢मत् । सा꣢ । श꣡न्ता꣢꣯ता । शम् । ता꣣ता । म꣡यः꣢꣯ । क꣣रत् । अ꣡प꣢꣯ । स्रि꣡धः꣢꣯ ॥१०२॥
स्वर रहित मन्त्र
उत स्या नो दिवा मतिरदितिरूत्यागमत् । सा शन्ताता मयस्करदप स्रिधः ॥१०२॥
स्वर रहित पद पाठ
उत । स्या । नः । दिवा । मतिः । अदितिः । अ । दितिः । ऊत्या । आ । गमत् । सा । शन्ताता । शम् । ताता । मयः । करत् । अप । स्रिधः ॥१०२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 102
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 1; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 11;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 1; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 11;
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विषय - अगले मन्त्र में अदिति देवता है, इसमें परमेश्वर का जगन्माता के रूप में वर्णन है।
पदार्थ -
(उत) और (स्या) वह (मतिः) सब कुछ जाननेवाली (अदितिः) अखण्डनीय जगन्माता (ऊत्या) रक्षा के साथ (नः) हमारे समीप (आ गमत्) आये। (सा) वह (शन्ताता) शान्तिकर्म में (मयः) सुख (करत्) करे, और (स्रिधः) हिंसा-वृत्तियों तथा हिंसकों को (अप) दूर करे ॥६॥
भावार्थ - ‘हे शतकर्मन् ! तू ही हमारा पिता है, तू ही हमारी माता है’ (साम ११७), यहाँ परमात्मा को माता कहा गया है। उसके माता होने का ही यहाँ अदिति नाम से वर्णन है। जगन्माता अदिति है क्योंकि वह कभी खण्डित नहीं होती तथा अदीन, अजर, अमर और नित्य रहती है। विलाप, लूटपाट, हाहाकार से पीड़ित इस जगत् में वह कृपा करके शान्तिप्रिय सज्जनों से किये जाते हुए शान्ति के प्रयत्नों को सफल करके सारे भूमण्डल में सुख की वर्षा करे और हिंसकों को भी अपनी शुभ प्रेरणा से धर्मात्मा बना दे ॥६॥
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