Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 101
ऋषिः - त्रित आप्त्यः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
11

ज꣣ज्ञानः꣢ स꣣प्त꣢ मा꣣तृ꣡भि꣢र्मे꣣धा꣡माशा꣢꣯सत श्रि꣣ये꣢ । अ꣣यं꣢ ध्रु꣣वो꣡ र꣢यी꣣णां꣡ चि꣢केत꣣दा꣢ ॥१०१॥

स्वर सहित पद पाठ

ज꣣ज्ञानः꣢ । स꣣प्त꣢ । मा꣣तृ꣡भिः꣢ । मे꣣धा꣢म् । आ । अ꣣शासत । श्रिये꣢ । अ꣣य꣢म् । ध्रु꣣वः꣢ । र꣣यीणा꣢म् । चि꣣केतत् । आ꣢ ॥१०१॥


स्वर रहित मन्त्र

जज्ञानः सप्त मातृभिर्मेधामाशासत श्रिये । अयं ध्रुवो रयीणां चिकेतदा ॥१०१॥


स्वर रहित पद पाठ

जज्ञानः । सप्त । मातृभिः । मेधाम् । आ । अशासत । श्रिये । अयम् । ध्रुवः । रयीणाम् । चिकेतत् । आ ॥१०१॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 101
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 1; मन्त्र » 5
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 11;
Acknowledgment

पदार्थ -
पवमान सोम अर्थात् चित्तशोधक परमात्मा (सप्त) सात (मातृभिः) माता के तुल्य गायत्री आदि छन्दों से युक्त वेदवाणियों द्वारा (जज्ञानः) उपासक के हृदय में प्रादुर्भूत होकर (श्रिये) सम्पदा की प्राप्ति के लिए (मेधाम्) धारणावती बुद्धि को (आ अशासत) प्रदान करता है, जिससे (ध्रुवः) स्थितप्रज्ञ हुआ (अयम्) यह उपासक (रयीणाम्) श्रेष्ठ अध्यात्म-सम्पत्तियों को (आ चिकेतत्) प्राप्त कर लेता है ॥५॥

भावार्थ - गायत्री आदि सात छन्दों में बद्ध वेदवाणियों के गान से परमात्मा का सान्निध्य प्राप्त किये हुए योगी को ऋतम्भरा प्रज्ञा के उत्पन्न हो जाने से सब अध्यात्मसम्पदाएँ प्राप्त हो जाती हैं ॥५॥

इस भाष्य को एडिट करें
Top