Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1022
ऋषिः - वसुश्रुत आत्रेयः
देवता - अग्निः
छन्दः - पङ्क्तिः
स्वरः - पञ्चमः
काण्ड नाम -
5
आ꣡ ते꣢ अग्न इधीमहि द्यु꣣म꣡न्तं꣢ देवा꣣ज꣡र꣢म् । यु꣢द्ध꣣ स्या꣢ ते꣣ प꣡नी꣢यसी स꣣मि꣢द्दी꣣द꣡य꣢ति꣣ द्य꣡वीष꣢꣯ꣳ स्तो꣣तृ꣢भ्य꣣ आ꣡ भ꣢र ॥१०२२॥
स्वर सहित पद पाठआ꣢ । ते꣣ । अग्ने । इधीमहि । द्युम꣡न्त꣢म् । दे꣣व । अज꣡र꣢म् । अ꣣ । ज꣡र꣢꣯म् । यत् । ह꣣ । स्या꣢ । ते꣣ । प꣡नी꣢꣯यसी । स꣣मि꣢त् । स꣣म् । इ꣢त् । दी꣣द꣡य꣢ति । द्य꣡वि꣢꣯ । इ꣡ष꣢꣯म् । स्तो꣣तृ꣡भ्यः꣢ । आ । भ꣣र ॥१०२२॥
स्वर रहित मन्त्र
आ ते अग्न इधीमहि द्युमन्तं देवाजरम् । युद्ध स्या ते पनीयसी समिद्दीदयति द्यवीषꣳ स्तोतृभ्य आ भर ॥१०२२॥
स्वर रहित पद पाठ
आ । ते । अग्ने । इधीमहि । द्युमन्तम् । देव । अजरम् । अ । जरम् । यत् । ह । स्या । ते । पनीयसी । समित् । सम् । इत् । दीदयति । द्यवि । इषम् । स्तोतृभ्यः । आ । भर ॥१०२२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1022
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 21; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 7; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 21; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 7; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
Acknowledgment
विषय - प्रथम ऋचा पूर्वार्चिक में ४१९ क्रमाङ्क पर परमात्मा को सम्बोधित की गयी थी। यहाँ आचार्य को सम्बोधन करते हैं।
पदार्थ -
हे (देव) ज्ञान-प्रकाश के प्रदाता (अग्ने) विद्वन् आचार्य ! हम (ते) आपके (द्युमन्तम्) तेजस्वी, (अजरम्) पुराना न होनेवाले ज्ञान-समूह को (इधीमहि) अपने अन्दर प्रदीप्त करते हैं। (यत् ह) जो (स्या) वह (ते) आपकी (पनीयसी) अतिशय स्तुति-योग्य (समित्) ज्ञान-दीप्ति (द्यवि) प्रकाशित आपके आत्मा में (दीदयति) प्रदीप्त हो रही है, उस (इषम्) व्याप्त ज्ञानदीप्ति को (स्तोतृभ्यः) ईश्वर-स्तोता हम शिष्यों को (आ भर) प्रदान कीजिए ॥१॥
भावार्थ - जो कोई भी विद्याएँ आचार्य जानता है, उन सभी को शिष्यों के लिए भलीभाँति देवे, जिससे शिष्य विद्वान् होकर अपने शिष्यों को पढ़ायें। इस प्रकार विद्या के पढ़ने-पढ़ाने का क्रम आगे-आगे बिना विघ्न के चलता रहे ॥१॥
इस भाष्य को एडिट करें