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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1036
ऋषिः - कश्यपो मारीचः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
4

ते꣡ विश्वा꣢꣯ दा꣣शु꣢षे꣣ व꣢सु꣣ सो꣡मा꣢ दि꣣व्या꣢नि꣣ पा꣡र्थि꣢वा । प꣡व꣢न्ता꣣मा꣡न्तरि꣢꣯क्ष्या ॥१०३६॥

स्वर सहित पद पाठ

ते । वि꣡श्वा꣢꣯ । दा꣣शु꣡षे꣢ । व꣡सु꣢꣯ । सो꣡माः꣢꣯ । दि꣣व्या꣡नि꣢ । पा꣡र्थि꣢꣯वा । प꣡व꣢꣯न्ताम् । आ । अ꣣न्त꣡रि꣢क्ष्या ॥१०३६॥


स्वर रहित मन्त्र

ते विश्वा दाशुषे वसु सोमा दिव्यानि पार्थिवा । पवन्तामान्तरिक्ष्या ॥१०३६॥


स्वर रहित पद पाठ

ते । विश्वा । दाशुषे । वसु । सोमाः । दिव्यानि । पार्थिवा । पवन्ताम् । आ । अन्तरिक्ष्या ॥१०३६॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1036
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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पदार्थ -
(ते सोमाः) उपासक के अन्तरात्मा में बहते हुए वे ब्रह्मानन्द-रस (दाशुषे) परमात्मा को आत्मसमर्पण करनेवाले उस उपासक के लिए (दिव्यानि) आनन्दमय और विज्ञानमय लोकों से सम्बद्ध, (पार्थिवा) अन्नमय और प्राणमय लोकों से सम्बद्ध तथा (आन्तरिक्ष्या) मनोमय लोक से सम्बद्ध (विश्वा वसु) सब ऐश्वर्यों को (पवन्ताम्) प्रवाहित करें ॥३॥

भावार्थ - ब्रह्मानन्द अधिगत हो जाने पर देह, प्राण, मन, बुद्धि एवं आत्मा से सम्बद्ध सभी सम्पदाएँ वा सिद्धियाँ योगियों को प्राप्त हो जाती हैं ॥३॥

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