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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1037
ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
5
प꣡व꣢स्व देव꣣वी꣡रति꣢꣯ प꣣वि꣡त्र꣢ꣳ सोम꣣ र꣡ꣳह्या꣢ । इ꣡न्द्र꣢मिन्दो꣣ वृ꣡षा वि꣢꣯श ॥१०३७॥
स्वर सहित पद पाठप꣡व꣢꣯स्व । दे꣣ववीः꣡ । दे꣣व । वीः꣢ । अ꣡ति꣢꣯ । प꣣वि꣡त्र꣢म् । सो꣣म । र꣡ꣳह्या꣢꣯ । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । इ꣣न्दो । वृ꣡षा꣢꣯ । वि꣣श ॥१०३७॥
स्वर रहित मन्त्र
पवस्व देववीरति पवित्रꣳ सोम रꣳह्या । इन्द्रमिन्दो वृषा विश ॥१०३७॥
स्वर रहित पद पाठ
पवस्व । देववीः । देव । वीः । अति । पवित्रम् । सोम । रꣳह्या । इन्द्रम् । इन्दो । वृषा । विश ॥१०३७॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1037
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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विषय - प्रथम ऋचा में सोम नाम द्वारा जगदीश्वर से प्रार्थना की गयी है।
पदार्थ -
हे (सोम) रस के भण्डार जगदीश्वर ! (देववीः) सदाचारी विद्वानों को प्राप्त होनेवाले आप (रंह्या) वेग से (पवित्रम् अति) पवित्र हृदय-रूप छन्नी को पार करके (पवस्व) अन्तरात्मा में परिस्रुत होओ। हे (इन्दो) रस से आर्द्र करनेवाले जगत्पति ! (वृषा) आनन्द की वर्षा करनेवाले आप (इन्द्रम्) जीवात्मा में (विश) प्रवेश करो ॥१॥
भावार्थ - जैसे सोमौषधि का रस दशापवित्र नामक छन्नी के माध्यम से द्रोणकलश में पहुँचता है, वैसे ही परमेश्वर से आता हुआ आनन्दरस हृदय के माध्यम से अन्तरात्मा में पहुँचता है ॥१॥
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