Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1041
ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
6

स꣣मुद्रो꣢ अ꣣प्सु꣡ मा꣢मृजे विष्ट꣣म्भो꣢ ध꣣रु꣡णो꣢ दि꣣वः꣢ । सो꣡मः꣢ प꣣वि꣡त्रे꣢ अस्म꣣युः꣢ ॥१०४१॥

स्वर सहित पद पाठ

स꣣मुद्रः꣢ । स꣣म् । उद्रः꣢ । अ꣣प्सु꣢ । मा꣣मृजे । विष्टम्भः꣢ । वि꣣ । स्तम्भः꣢ । ध꣣रु꣡णः꣢ । दि꣣वः꣢ । सो꣡मः꣢꣯ । प꣣वि꣡त्रे꣢ । अ꣣स्मयुः꣢ ॥१०४१॥


स्वर रहित मन्त्र

समुद्रो अप्सु मामृजे विष्टम्भो धरुणो दिवः । सोमः पवित्रे अस्मयुः ॥१०४१॥


स्वर रहित पद पाठ

समुद्रः । सम् । उद्रः । अप्सु । मामृजे । विष्टम्भः । वि । स्तम्भः । धरुणः । दिवः । सोमः । पवित्रे । अस्मयुः ॥१०४१॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1041
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 5
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 5
Acknowledgment

पदार्थ -
(समुद्रः) आनन्द-रसों को उमड़ानेवाला, (विष्टम्भः) सबको सहारा देनेवाला, (दिवः) सूर्य को (धरुणः) थामनेवाला, (अस्मयुः) हमसे प्रीति करनेवाला (सोमः) जगत्स्रष्टा परमेश्वर (पवित्रे) वायु में और (अप्सु) जलों में (मामृजे) नित्य शुद्धि करता रहता है ॥५॥

भावार्थ - यदि जल, वायु आदि प्राकृतिक पदार्थों को सूर्य द्वारा प्रतिदिन जगदीश्वर शुद्ध न करता रहता तो मलों के पुञ्ज होकर वे किसी के उपयोग के योग्य भी न रहते ॥५॥

इस भाष्य को एडिट करें
Top