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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1045
ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
5
गो꣣षा꣡ इ꣢न्दो नृ꣣षा꣡ अ꣢स्यश्व꣣सा꣡ वा꣢ज꣣सा꣢ उ꣣त꣢ । आ꣣त्मा꣢ य꣣ज्ञ꣡स्य꣢ पू꣣र्व्यः꣢ ॥१०४५॥
स्वर सहित पद पाठगो꣣षाः꣢ । गो꣢ । साः꣢ । इ꣣न्दो । नृषाः꣢ । नृ꣣ । साः꣢ । अ꣣सि । अश्वसाः꣢ । अ꣣श्व । साः꣢ । वा꣣जसाः꣢ । वा꣣ज । साः꣢ । उ꣣त꣢ । आ꣣त्मा꣢ । य꣣ज्ञ꣡स्य꣢ । पू꣣र्व्यः꣢ ॥१०४५॥
स्वर रहित मन्त्र
गोषा इन्दो नृषा अस्यश्वसा वाजसा उत । आत्मा यज्ञस्य पूर्व्यः ॥१०४५॥
स्वर रहित पद पाठ
गोषाः । गो । साः । इन्दो । नृषाः । नृ । साः । असि । अश्वसाः । अश्व । साः । वाजसाः । वाज । साः । उत । आत्मा । यज्ञस्य । पूर्व्यः ॥१०४५॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1045
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 9
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 9
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 9
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 9
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विषय - अगले मन्त्र में परमात्मा के गुण-कर्मों का वर्णन है।
पदार्थ -
हे (इन्दो) तेजस्वी, आनन्द-रस से आर्द्र करनेवाले परमात्मदेव ! आप (गोषाः) गायों, वेदवाणियों, भूमियों वा इन्द्रियों को देनेवाले, (नृषाः) पुरुषार्थी वीर सन्तानों को देनेवाले, (अश्वसाः) घोड़ों और प्राणों को देनेवाले, (उत) और (वाजसाः) बल, अन्न, धन और विज्ञान को देनेवाले (असि) हो। आप (यज्ञस्य) परोपकार-रूप यज्ञ के (पूर्व्यः) सनातनकाल से चले आये (आत्मा) प्राण हो ॥९॥
भावार्थ - अहो, महान् हैं जगदीश्वर के उपकार, जो हमें अनेक बहुमूल्य वस्तुएँ उत्पन्न करके देता ह और ऐसा करता हुआ वह सबको परोपकार का उपदेश करता है ॥९॥
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