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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1060
ऋषिः - अवत्सारः काश्यपः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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आ꣡ ययो꣢꣯स्त्रि꣣ꣳश꣢तं꣣ त꣡ना꣢ स꣣ह꣡स्रा꣢णि च꣣ द꣡द्म꣢हे । त꣢र꣣त्स꣢ म꣣न्दी꣡ धा꣢वति ॥१०६०॥

स्वर सहित पद पाठ

आ꣢ । य꣡योः꣢꣯ । त्रि꣣ꣳश꣡त꣢म् । त꣡ना꣢꣯ । स꣣ह꣡स्रा꣢णि । च꣣ । द꣡द्म꣢꣯हे । त꣡र꣢꣯त् । सः । म꣣न्दी꣢ । धा꣣वति ॥१०६०॥


स्वर रहित मन्त्र

आ ययोस्त्रिꣳशतं तना सहस्राणि च दद्महे । तरत्स मन्दी धावति ॥१०६०॥


स्वर रहित पद पाठ

आ । ययोः । त्रिꣳशतम् । तना । सहस्राणि । च । दद्महे । तरत् । सः । मन्दी । धावति ॥१०६०॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1060
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 5; मन्त्र » 4
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 2; सूक्त » 2; मन्त्र » 4
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पदार्थ -
(ययोः) दोषों का ध्वंस करनेवाले और बहुत से लाभों को देनेवाले जिन आत्मा और मन के (त्रिंशतम्) तीस (च) और (सहस्राणि) हजारों (तना) विस्तीर्ण ऐश्वर्य, हम (आदद्महे) ग्रहण कर लेते हैं, उन ऐश्वर्यों से (सः मन्दी) वह स्तोता (धावति) स्वयं को धो लेता है और (तरत्) शोक को तर जाता है, अर्थात् मुक्ति पा लेता है ॥ आत्मा और मन के तीस ऐश्वर्य इस प्रकार हैं—८ योगाङ्ग, २ अभ्यास-वैराग्य, १ प्रणवजप, १ वशीकार, १ अध्यात्मप्रसाद, ३ तप, स्वाध्याय, ईश्वर-प्रणिधान, ४ वृत्तियाँ—मैत्री, करुणा, मुदिता और उपेक्षा, ८ अणिमा आदि सिद्धियाँ, १ विवेकख्याति, १ कैवल्य। अनेक सहस्र ऐश्वर्य उन्हीं के महिमारूप हैं। आत्मा और मन को शुद्ध करके तथा उनका यथोचित उपयोग करके उपासक अगणित ऐश्वर्य प्राप्त कर सकता है, यह तात्पर्य है ॥४॥

भावार्थ - केवल भौतिक धन ही धन नहीं है, प्रत्युत उसकी अपेक्षा अधिक महान् धन आध्यात्मिक धन है, जिसे पाने के लिए मनुष्यों को यत्न करना चाहिए ॥४॥

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