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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1061
ऋषिः - जमदग्निर्भार्गवः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
6
ए꣣ते꣡ सोमा꣢꣯ असृक्षत गृणा꣣नाः꣡ शव꣢꣯से म꣣हे꣢ । म꣣दि꣡न्त꣢मस्य꣣ धा꣡र꣢या ॥१०६१॥
स्वर सहित पद पाठए꣣ते꣢ । सो꣡माः꣢꣯ । अ꣢सृक्षत । गृणानाः꣢ । श꣡व꣢꣯से । म꣣हे꣢ । म꣣दि꣡न्त꣢मस्य । धा꣡र꣢꣯या ॥१०६१॥
स्वर रहित मन्त्र
एते सोमा असृक्षत गृणानाः शवसे महे । मदिन्तमस्य धारया ॥१०६१॥
स्वर रहित पद पाठ
एते । सोमाः । असृक्षत । गृणानाः । शवसे । महे । मदिन्तमस्य । धारया ॥१०६१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1061
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 2; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 2; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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विषय - प्रथम मन्त्र में गुरुओं का वर्णन है।
पदार्थ -
(एते) ये (गृणानाः) शास्त्रों का उपदेश करते हुए (सोमाः) विद्यारस के भण्डार गुरुजन ! (महे शवसे) महान् बल के लिए (मदिन्तमस्य) अत्यधिक आनन्ददायक ज्ञान की (धारया) धारा के साथ (असृक्षत) विद्यादान कर रहे हैं ॥१॥
भावार्थ - योग्य गुरुओं से ग्रहण की गयी विद्या शिष्यों की कीर्त्ति करनेवाली होती है ॥१॥
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