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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1062
ऋषिः - जमदग्निर्भार्गवः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
6
अ꣣भि꣡ गव्या꣢꣯नि वी꣣त꣡ये꣢ नृ꣣म्णा꣡ पु꣢ना꣣नो꣡ अ꣢र्षसि । स꣣न꣡द्वा꣢जः꣣ प꣡रि꣢ स्रव ॥१०६२॥
स्वर सहित पद पाठअ꣣भि꣢ । ग꣡व्या꣢꣯नि । वी꣣त꣡ये꣢ । नृ꣣म्णा꣢ । पु꣣नानः꣢ । अ꣣र्षसि । सन꣡द्वा꣢जः । स꣣न꣢त् । वा꣣जः । प꣡रि꣢꣯ । स्र꣣व ॥१०६२॥
स्वर रहित मन्त्र
अभि गव्यानि वीतये नृम्णा पुनानो अर्षसि । सनद्वाजः परि स्रव ॥१०६२॥
स्वर रहित पद पाठ
अभि । गव्यानि । वीतये । नृम्णा । पुनानः । अर्षसि । सनद्वाजः । सनत् । वाजः । परि । स्रव ॥१०६२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1062
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 2; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 2; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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विषय - अगले मन्त्र में छात्र आचार्य को कह रहे हैं।
पदार्थ -
हे सोम अर्थात् विद्यारस के भण्डार आचार्य ! (वीतये) हम शिष्यों की प्रगति के लिए (गव्यानि) इन्द्रियों के (नृम्णा) बलों को (पुनानः) पवित्र करते हुए, आप (अभि अर्षसि) हमारे प्रति आते हो। वे आप (सनद्वाजः) अन्न, धन आदि देते हुए (परि स्रव) बहो, अर्थात् हमें विद्या पढ़ाओ ॥२॥
भावार्थ - कुलपति आचार्य छात्रों के चरित्रों को पवित्र करते हुए, उन्हें अन्न-वस्त्र-बल आदि प्रदान करते हुए अगाध विद्या पढ़ाएँ ॥२॥
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