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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1076
ऋषिः - कश्यपो मारीचः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
5
इ꣡न्द्रा꣢येन्दो म꣣रु꣡त्व꣢ते꣣ प꣡व꣢स्व꣣ म꣡धु꣢मत्तमः । अ꣣र्क꣢स्य꣣ यो꣡नि꣢मा꣣स꣡द꣢म् ॥१०७६॥
स्वर सहित पद पाठइ꣡न्द्रा꣢꣯य । इ꣣न्दो । मरु꣡त्व꣢ते । प꣡व꣢꣯स्व । म꣡धु꣢꣯मत्तमः । अ꣣र्क꣡स्य꣢ । यो꣡नि꣢꣯म् । आ꣣स꣡द꣢म् । आ꣣ । स꣡द꣢꣯म् ॥१०७६॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रायेन्दो मरुत्वते पवस्व मधुमत्तमः । अर्कस्य योनिमासदम् ॥१०७६॥
स्वर रहित पद पाठ
इन्द्राय । इन्दो । मरुत्वते । पवस्व । मधुमत्तमः । अर्कस्य । योनिम् । आसदम् । आ । सदम् ॥१०७६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1076
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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विषय - प्रथम ऋचा पूर्वार्चिक में ४७२ क्रमाङ्क पर परमात्मा के विषय में व्याख्यात हो चुकी है। यहाँ गुरु-शिष्य विषय का वर्णन करते हैं।
पदार्थ -
हे (इन्दो) ज्ञानरस के भण्डार आचार्य ! (मधुमत्तमः) अतिशय मधुर आप (मरुत्वते) उत्कृष्ट प्राणवाले (इन्द्राय) मुझ शिष्य के लिए (पवस्व) ज्ञानरस प्रवाहित कीजिए। मैं (अर्कस्य) पूजनीय आपके (योनिम्) विद्यागृह अर्थात् गुरुकुल में (आसदम्) आया हूँ ॥१॥
भावार्थ - गुरुकुल में प्रविष्ट छात्रों को विद्वान्, मधुर स्वभाववाले गुरुजन प्रेम से सब विद्याएँ प्रदान करें और शिष्य श्रद्धा से उनका सत्कार करें ॥१॥
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