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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1079
ऋषिः - सप्तर्षयः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - बार्हतः प्रगाथः (विषमा बृहती, समा सतोबृहती)
स्वरः - मध्यमः
काण्ड नाम -
6
मृ꣣ज्य꣡मा꣢नः सुहस्त्या समु꣣द्रे꣡ वाच꣢꣯मिन्वसि । र꣣यिं꣢ पि꣣श꣡ङ्गं꣢ बहु꣣लं꣡ पु꣢रु꣣स्पृ꣢हं꣣ प꣡व꣢माना꣣꣬भ्य꣢꣯र्षसि ॥१०७९॥
स्वर सहित पद पाठमृ꣣ज्य꣡मा꣢नः । सु꣣हस्त्य । सु । हस्त्य । समुद्रे꣢ । स꣣म् । उद्रे꣢ । वा꣡च꣢꣯म् । इ꣣न्वसि । रयि꣢म् । पि꣣श꣡ङ्ग꣢म् । ब꣣हुल꣢म् । पु꣣रुस्पृ꣡ह꣢म् । पु꣣रु । स्पृ꣡ह꣢꣯म् । प꣡व꣢꣯मान । अ꣣भि꣢ । अ꣢र्षसि ॥१०७९॥
स्वर रहित मन्त्र
मृज्यमानः सुहस्त्या समुद्रे वाचमिन्वसि । रयिं पिशङ्गं बहुलं पुरुस्पृहं पवमानाभ्यर्षसि ॥१०७९॥
स्वर रहित पद पाठ
मृज्यमानः । सुहस्त्य । सु । हस्त्य । समुद्रे । सम् । उद्रे । वाचम् । इन्वसि । रयिम् । पिशङ्गम् । बहुलम् । पुरुस्पृहम् । पुरु । स्पृहम् । पवमान । अभि । अर्षसि ॥१०७९॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1079
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 12; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 4; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 12; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 4; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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विषय - प्रथम ऋचा पूर्वार्चिक में ५१७ क्रमाङ्क पर परमात्मा के विषय में व्याख्यात की जा चुकी है। यहाँ भी वही विषय प्रकारान्तर से वर्णित किया जा रहा है।
पदार्थ -
हे (सुहस्त्य) उत्कृष्ट हस्तकला में कुशल जगदीश्वर ! (मृज्यमानः) श्रेष्ठ गुण-कर्म-स्वभावों से अलङ्कृत होते हुए आप (समुद्रे) अन्तरिक्ष में (वाचम्) विद्युद्गर्जना के शब्द को (इन्वसि) प्रेरित करते हो और हे (पवमान) सर्वान्तर्यामिन् ! आप (बहुलम्) प्रचुर, (पुरुस्पृह्म्) बहुत चाहने योग्य (पिशङ्गं रयिम्) पीले वर्ण के धन सुवर्ण आदि को (अभि) हमारी ओर (अर्षसि) भेजते हो ॥१॥
भावार्थ - अन्तरिक्ष में बादलों का निर्माण, वर्षाकर्म आदि और विना ही शुल्क लिये बहूमूल्य धन आदि को उत्पन्न करना परमेश्वर का ही कर्म है ॥१॥
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