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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1113
ऋषिः - वामदेवः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - द्विपदा विराट्
स्वरः - पञ्चमः
काण्ड नाम -
5
प्र꣡ व इन्द्राय वृत्रहन्तमाय विप्राय गाथं गायत यं जुजोषते ॥१११३॥
स्वर सहित पद पाठप्र꣢ । वः꣣ । इ꣡न्द्रा꣢꣯य । वृ꣣त्रह꣡न्त꣢माय । वृ꣣त्र । ह꣡न्त꣢꣯माय । वि꣡प्रा꣢꣯य । वि । प्रा꣣य । गाथ꣢म् । गा꣣यत । य꣢म् । जु꣣जो꣡ष꣢ते ॥१११३॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र व इन्द्राय वृत्रहन्तमाय विप्राय गाथं गायत यं जुजोषते ॥१११३॥
स्वर रहित पद पाठ
प्र । वः । इन्द्राय । वृत्रहन्तमाय । वृत्र । हन्तमाय । विप्राय । वि । प्राय । गाथम् । गायत । यम् । जुजोषते ॥१११३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1113
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 24; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 7; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 24; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 7; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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विषय - प्रथमा ऋचा पूर्वार्चिक में ४४६ क्रमाङ्क पर परमात्मा की स्तुति के विषय में व्याख्यात हो चुकी है। यहाँ गुरु-शिष्य का और राजा-प्रजा का विषय वर्णित है।
पदार्थ -
हे शिष्यो वा हे प्रजाजनो ! (वः) तुम (वृत्रहन्तमाय) दोषों वा शत्रुओं के अतिशय विनाशक, (विप्राय) विद्वान् (इन्द्राय) आचार्य वा राजा के लिए (गाथम्) गुणवर्णनपरक स्तोत्र (प्र गायत) भली-भाँति गाओ, (यम्) जिस स्तोत्र को, वह (जुजोषते) प्रीति के साथ सेवन करे ॥१॥
भावार्थ - शिष्यों को गुरुओं के और प्रजाजनों को राजा के गुणों का कीर्तन करके उनसे यथायोग्य विद्या, विनय, राष्ट्र का उत्थान आदि लाभ प्राप्त करने चाहिएँ ॥१॥
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