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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1114
ऋषिः - वामदेवः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - द्विपदा विराट्
स्वरः - पञ्चमः
काण्ड नाम -
6
अर्च꣢꣯न्त्यर्कं मरुतः स्वर्का आ स्तोभति श्रुतो युवा स इन्द्रः ॥१११४॥
स्वर सहित पद पाठअ꣡र्च꣢꣯न्ति । अ꣣र्क꣢म् । म꣣रु꣡तः꣢ । स्व꣣र्काः꣢ । सु꣣ । अर्काः꣢ । आ । स्तो꣣भति । श्रुतः꣡ । यु꣡वा꣢꣯ । सः । इ꣡न्द्रः꣢꣯ ॥१११४॥
स्वर रहित मन्त्र
अर्चन्त्यर्कं मरुतः स्वर्का आ स्तोभति श्रुतो युवा स इन्द्रः ॥१११४॥
स्वर रहित पद पाठ
अर्चन्ति । अर्कम् । मरुतः । स्वर्काः । सु । अर्काः । आ । स्तोभति । श्रुतः । युवा । सः । इन्द्रः ॥१११४॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1114
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 24; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 7; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 24; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 7; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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विषय - द्वितीया ऋचा पूर्वार्चिक में ४४५ क्रमाङ्क पर परमात्मा के विषय में व्याख्यात हो चुकी है। यहाँ गुरु-शिष्य का और राजा-प्रजा का विषय वर्णित है।
पदार्थ -
प्रथम—गुरु और शिष्य के पक्ष में। (स्वर्काः) शुभ वेदमन्त्रों का पाठ करनेवा्ले (मरुतः) प्राणायाम के अभ्यासी शिष्य (अर्कम्) पूजनीय आचार्यदेव का (अर्चन्ति) सत्कार करते हैं। (श्रुतः) प्रसिद्ध, (युवा) युवा के तुल्य सक्रिय (सः इन्द्रः) वह आचार्य, उन्हें (आ स्तोभति) विद्या आदि के प्रदान द्वारा सहारा देता है ॥ द्वितीय—राजा और प्रजा के पक्ष में। (स्वर्काः) सूर्यसम अतितेजस्वी (मरुतः) राष्ट्रवासी मनुष्य (अर्कम्) तेजस्वी राजा का (अर्चन्ति) सत्कार करते हैं। (श्रुतः) सबके द्वारा जिसके गुण सुने गये हैं, ऐसा (युवा) युवक (सः इन्द्रः) वह वीर राजा, उनकी (आ स्तोभति) शरण देकर रक्षा करता है ॥२॥ यहाँ श्लेषालङ्कार है ॥२॥
भावार्थ - शिष्यों से सत्कार किया गया आचार्य और प्रजाजनों से सत्कार किया गया राजा पूर्णरूप से उनका हित करता है ॥२॥
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