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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1116
ऋषिः - वृषगणो वासिष्ठः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः काण्ड नाम -
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प्र꣡ काव्य꣢꣯मु꣣श꣡ने꣢व ब्रुवा꣣णो꣢ दे꣣वो꣢ दे꣣वा꣢नां꣣ ज꣡नि꣢मा विवक्ति । म꣡हि꣢व्रतः꣣ शु꣡चि꣢बन्धुः पाव꣣कः꣢ प꣣दा꣡ व꣢रा꣣हो꣢ अ꣣꣬भ्ये꣢꣯ति꣣ रे꣡भ꣢न् ॥१११६॥

स्वर सहित पद पाठ

प्र꣢ । का꣡व्य꣢꣯म् । उ꣣श꣡ना꣢ । इ꣣व । ब्रुवाणः꣢ । दे꣣वः꣢ । दे꣣वा꣡ना꣢म् । ज꣡नि꣢꣯म । वि꣣वक्ति । म꣡हि꣢꣯व्रतः । म꣡हि꣢꣯ । व्र꣣तः । शु꣡चि꣢꣯बन्धुः । शु꣡चि꣢꣯ । ब꣣न्धुः । पावकः꣢ । प꣣दा꣢ । व꣣राहः꣢ । अ꣣भि꣢ । ए꣣ति । रे꣡भ꣢꣯न् ॥१११६॥


स्वर रहित मन्त्र

प्र काव्यमुशनेव ब्रुवाणो देवो देवानां जनिमा विवक्ति । महिव्रतः शुचिबन्धुः पावकः पदा वराहो अभ्येति रेभन् ॥१११६॥


स्वर रहित पद पाठ

प्र । काव्यम् । उशना । इव । ब्रुवाणः । देवः । देवानाम् । जनिम । विवक्ति । महिव्रतः । महि । व्रतः । शुचिबन्धुः । शुचि । बन्धुः । पावकः । पदा । वराहः । अभि । एति । रेभन् ॥१११६॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1116
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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पदार्थ -
(उशना इव) मनुष्यों के हितकाङ्क्षी परमेश्वर के समान अर्थात् जैसे परमेश्वर ने सृष्टि के आदि में वेदकाव्य का उपदेश किया था, वैसे ही (काव्यम्) वेदकाव्य को (प्र ब्रुवाणः) छात्रों के लिए उपदेश करता हुआ (देवः) दिव्य गुणों से युक्त सोम अर्थात् विद्यारस का भण्डार आचार्य (देवानाम्) जगत् के दिव्य पदार्थ सूर्य, चन्द्र, विद्युत्, नक्षत्र, जल, वायु, अग्नि, पर्वत, नदी, समुद्र आदियों के (जनिम्) जन्म की (विवत्ति) व्याख्या करता है अर्थात् कैसे उन पदार्थों की उत्पत्ति हुई, उन पदार्थों में क्या गुण हैं, क्या उनका उपयोग है, आदि बातें शिष्यों को बतलाता है। (महिव्रतः) महान् व्रतों और महान् कर्मोंवाला, (शुचिबन्धुः) पवित्र परमेश्वर जिसका बन्धु है, ऐसा (पावकः) पवित्रता देनेवाला (वराहः) जलवर्षी बादल के समान विद्यावर्षी आचार्य (पदा) शास्त्रों के सुबन्त एवं तिङन्त पदों का (रेभन्) उच्चारण करता हुआ (अभ्येति) पढ़ाने के लिए आता है ॥१॥ यहाँ उपमालङ्कार है ॥१॥

भावार्थ - सब शास्त्रों में पारंगत, सुयोग्य आचार्य शास्त्र के गूढ़ तत्त्व का भी इस प्रकार उपदेश करता है, जिससे विद्यार्थियों की बुद्धि में वह विषय हस्तामलकवत् स्पष्ट हो जाता है। स्वयं पवित्र, दूसरों को पवित्र करनेवाला, परमेश्वर का सखा वह आचार्य छात्रों का वन्दनीय होता है ॥१॥

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