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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1122
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
5
प꣡रि꣢ स्वा꣣ना꣢स꣣ इ꣡न्द꣢वो꣣ म꣡दा꣢य ब꣣र्ह꣡णा꣢ गि꣣रा꣢ । म꣡धो꣢ अर्षन्ति꣣ धा꣡र꣢या ॥११२२॥
स्वर सहित पद पाठप꣡रि꣢꣯ । स्वा꣣ना꣡सः꣢ । इ꣡न्द꣢꣯वः । म꣡दा꣢꣯य । ब꣣र्ह꣡णा꣢ । गि꣣रा꣢ । म꣡धोः꣢꣯ अ꣣र्षन्ति । धा꣡र꣢꣯या ॥११२२॥
स्वर रहित मन्त्र
परि स्वानास इन्दवो मदाय बर्हणा गिरा । मधो अर्षन्ति धारया ॥११२२॥
स्वर रहित पद पाठ
परि । स्वानासः । इन्दवः । मदाय । बर्हणा । गिरा । मधोः अर्षन्ति । धारया ॥११२२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1122
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 7
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 7
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 7
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 7
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विषय - सातवीं ऋचा पूर्वार्चिक में ४८५ क्रमाङ्क पर आनन्दरस के विषय में व्याख्यात हो चुकी है। यहाँ गुरुओं का वर्णन है।
पदार्थ -
(स्वानासः) पढ़ाने के समय शुद्धोच्चारण या भाषण करनेवाले (इन्दवः) तेजस्वी, विद्यारस से भिगोनेवाले गुरुलोग (मदाय) शिष्यों के आनन्द के लिए (बर्हणा) विरोधियों के सिद्धान्तों का खण्डन करनेवाली (गिरा) वाणी से (मधो) मधुर ज्ञानरस की (धारया) धारा के साथ (परि अर्षन्ति) शिष्यों को चारों ओर प्राप्त होते हैं ॥७॥
भावार्थ - शिष्यों के प्रति आगाध प्रेम से परिप्लुत विद्वान् गुरु लोग उनके हित के लिए उन्हें ज्ञानधारा से सींचते हैं ॥७॥
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