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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1123
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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आ꣣पाना꣡सो꣢ वि꣣व꣡स्व꣢तो꣣ जि꣡न्व꣢न्त उ꣣ष꣢सो꣣ भ꣡ग꣢म् । सू꣢रा꣣ अ꣢ण्वं꣣ वि꣡ त꣢न्वते ॥११२३॥

स्वर सहित पद पाठ

आ꣣पाना꣡सः꣢ । वि꣣व꣡स्व꣢तः । वि꣣ । व꣡स्व꣢꣯तः । जि꣡न्व꣢꣯न्तः । उ꣣ष꣡सः꣢ । भ꣡ग꣢꣯म् । सू꣡राः꣢꣯ । अ꣡ण्व꣢꣯म् । वि । त꣣न्वते ॥११२३॥


स्वर रहित मन्त्र

आपानासो विवस्वतो जिन्वन्त उषसो भगम् । सूरा अण्वं वि तन्वते ॥११२३॥


स्वर रहित पद पाठ

आपानासः । विवस्वतः । वि । वस्वतः । जिन्वन्तः । उषसः । भगम् । सूराः । अण्वम् । वि । तन्वते ॥११२३॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1123
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 8
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 8
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पदार्थ -
(आपानासः) ज्ञानरस के कुएँ के समान, (सूराः) सूर्य के समान तेजस्वी गुरु लोग (विवस्वतः) अन्धकार को दूर करनेवाले सूर्य की, तथा (उषसः) उषा की (भगम्) शोभा को (जिन्वन्तः) शिष्यों के हृदयों में प्रेरित करते हुए (अण्वम्) सूक्ष्म से सूक्ष्म भी विज्ञान को (वितन्वते) शिष्य की बुद्धि में फैला देते हैं ॥८॥

भावार्थ - जैसे उषा और सूर्य रात्रि के अन्धेरे को चीरकर भूमि पर प्रकाश फैलाते हैं, वैसे ही गुरुजन शिष्यों के अज्ञानरूप अन्धकार को दूर करके सूक्ष्म से सूक्ष्म विज्ञान को उनके सम्मुख हस्तामलकवत् कर देते हैं और विद्या की ज्योति से उनके आत्मा को चमका देते हैं ॥८॥

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