Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1153
ऋषिः - सिकता निवावरी देवता - पवमानः सोमः छन्दः - जगती स्वरः - निषादः काण्ड नाम -
5

प्र꣢ वो꣣ धि꣡यो꣢ मन्द्र꣣यु꣡वो꣢ विप꣣न्यु꣡वः꣢ पन꣣स्यु꣡वः꣢ सं꣣व꣡र꣢णेष्वक्रमुः । ह꣢रिं꣣ क्री꣡ड꣢न्तम꣣꣬भ्य꣢꣯नूषत꣣ स्तु꣢भो꣣ऽभि꣢ धे꣣न꣢वः꣣ प꣢य꣣से꣡द꣢शिश्रयुः ॥११५३॥

स्वर सहित पद पाठ

प्र । वः꣣ । धि꣡यः꣢꣯ । म꣣न्द्रयु꣡वः꣢ । वि꣣पन्यु꣡वः꣢ । प꣣नस्यु꣡वः꣢ । सं꣢व꣡र꣢णेषु । स꣣म् । व꣡र꣢꣯णेषु । अ꣣क्रमुः । ह꣡रि꣢꣯म् । क्री꣡ड꣢꣯न्तम् । अ꣣भि꣢ । अ꣣नूषत । स्तु꣡भः꣢꣯ । अ꣣भि꣢ । धे꣣न꣡वः꣢ । प꣡य꣢꣯सा । इत् । अ꣣शिश्रयुः ॥११५३॥


स्वर रहित मन्त्र

प्र वो धियो मन्द्रयुवो विपन्युवः पनस्युवः संवरणेष्वक्रमुः । हरिं क्रीडन्तमभ्यनूषत स्तुभोऽभि धेनवः पयसेदशिश्रयुः ॥११५३॥


स्वर रहित पद पाठ

प्र । वः । धियः । मन्द्रयुवः । विपन्युवः । पनस्युवः । संवरणेषु । सम् । वरणेषु । अक्रमुः । हरिम् । क्रीडन्तम् । अभि । अनूषत । स्तुभः । अभि । धेनवः । पयसा । इत् । अशिश्रयुः ॥११५३॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1153
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
Acknowledgment

पदार्थ -
हे मनुष्यो (वः) तुम्हारी (मन्द्रयुवः) आनन्दप्रद परमेश्वर की कामना करनेवाली, (पनस्युवः) दूसरों के प्रति उत्कृष्ट व्यवहार करने की इच्छुक, (विपन्युवः) विशेष स्तुतिशील (धियः) बुद्धियाँ (संवरणेषु) उपासना-यज्ञों में (प्र अक्रमुः) उपासना आरम्भ करें। (क्रीडन्तम्) जगत् की खेलें खेलते हुए, (हरिम्) हृदयहारी परमात्मा की (स्तुभः) अर्चना करनेवाले जन (अभ्यनूषत) पूजा करें। परमात्मा की दी हुई (धेनवः) गौएँ (पयसा इत्) दूध से (अशिश्रयुः) सबकी सेवा करती रहें, अथवा (धेनवः) वेदवाणियाँ (पयसा इत्) प्रतिपाद्य अर्थ रूप दूध से (अशिश्रयुः) सबकी सेवा करती रहें ॥२॥

भावार्थ - खगोल में बहुत से सूर्य, नक्षत्र, ग्रह, उपग्रह आदि लोक जो इधर-उधर घूम रहे हैं, वह मानो जगदीश्वर गेंदों से क्रीडा कर रहा है। वही खिलाड़ी अपने खेल से सब जड़-चेतन-रूप जगत् का संचालन कर रहा है। इस कारण हम क्यों न उसकी अर्चना और वन्दना करें ॥२॥

इस भाष्य को एडिट करें
Top