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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1170
ऋषिः - नृमेध आङ्गिरसः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - ककुप्
स्वरः - ऋषभः
काण्ड नाम -
6
त्व꣡ꣳ हि नः꣢꣯ पि꣣ता꣡ व꣢सो꣣ त्वं꣢ मा꣣ता꣡ श꣢तक्रतो ब꣣भू꣡वि꣢थ । अ꣡था꣢ ते सु꣣म्न꣡मी꣢महे ॥११७०॥
स्वर सहित पद पाठत्वम् । हि । नः꣣ । पिता꣢ । व꣣सो । त्व꣢म् । मा꣣ता꣢ । श꣣तक्रतो । शत । क्रतो । बभू꣡वि꣢थ । अ꣡थ꣢꣯ । ते꣡ । सुम्न꣢म् । ई꣢महे ॥११७०॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वꣳ हि नः पिता वसो त्वं माता शतक्रतो बभूविथ । अथा ते सुम्नमीमहे ॥११७०॥
स्वर रहित पद पाठ
त्वम् । हि । नः । पिता । वसो । त्वम् । माता । शतक्रतो । शत । क्रतो । बभूविथ । अथ । ते । सुम्नम् । ईमहे ॥११७०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1170
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 13; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 6; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 13; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 6; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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विषय - आचार्य से प्रार्थना करके अब परमात्मा की स्तुति तथा उससे प्रार्थना करते हैं।
पदार्थ -
हे (वसो) निवासप्रदाता, (शतक्रतो) सैकड़ों कर्मों को करनेवाले परमेश ! (त्वं हि) आप ही (नः) हमारे (पिता) पिता और (त्वम्) आप ही (माता) माता (बभूविथ) हो। (अथ) इसलिए हम (ते) आपसे (सुम्नम्) सुख (ईमहे) माँगते हैं ॥२॥
भावार्थ - परमेश्वर एक ही होता हुआ सबका पिता के समान पालनकर्ता और माता के समान स्नेह देनेवाला वा चरित्र-निर्माता है। वह माता-पिता के तुल्य सबको सुख देता है ॥२॥
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