Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1169
ऋषिः - नृमेध आङ्गिरसः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - ककुप्
स्वरः - ऋषभः
काण्ड नाम -
8
त्वं꣡ न꣢ इ꣣न्द्रा꣡ भ꣢र꣣ ओ꣡जो꣢ नृ꣣म्ण꣡ꣳ श꣢तक्रतो विचर्षणे । आ꣢ वी꣣रं꣡ पृ꣢तना꣣स꣡ह꣢म् ॥११६९॥
स्वर सहित पद पाठत्व꣢म् । नः꣣ । इन्द्र । आ꣢ । भ꣣र । ओ꣡जः꣢꣯ । नृ꣣म्ण꣢म् । श꣣तक्रतो । शत । क्रतो । विचर्षणे । वि । चर्षणे । आ꣢ । वी꣣र꣢म् । पृ꣣तनास꣡ह꣢म् । पृतना । सहम् ॥११६९॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वं न इन्द्रा भर ओजो नृम्णꣳ शतक्रतो विचर्षणे । आ वीरं पृतनासहम् ॥११६९॥
स्वर रहित पद पाठ
त्वम् । नः । इन्द्र । आ । भर । ओजः । नृम्णम् । शतक्रतो । शत । क्रतो । विचर्षणे । वि । चर्षणे । आ । वीरम् । पृतनासहम् । पृतना । सहम् ॥११६९॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1169
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 13; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 6; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 13; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 6; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
Acknowledgment
विषय - प्रथम ऋचा पूर्वार्चिक में ४०५ क्रमाङ्क पर परमात्मा और राजा के विषय में व्याख्यात हो चुकी है। यहाँ क्षात्रधर्म के शिक्षक आचार्य को कह रहे हैं।
पदार्थ -
हे (शतक्रतो) बहुत बुद्धिमान्, (विचर्षणे) शिष्यों पर दृष्टि रखनेवाले, (इन्द्र) क्षात्रधर्म के शिक्षक आचार्य ! (त्वम्) आप (नः) हमें (ओजः) उत्साह और (नृम्णम्) बल (आ भर) प्रदान कीजिए। साथ ही (पृतनासहम्) शत्रु सेनाओं को हरानेवाला (वीरम्) वीर क्षत्रिय योद्धा (आ) प्रदान कीजिए ॥१॥
भावार्थ - उस-उस विद्या में निष्णात गुरु ही ब्राह्मण, क्षत्रिय वा वैश्य राष्ट्र के लिए उत्पन्न करता है ॥१॥
इस भाष्य को एडिट करें