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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1210
ऋषिः - अहमीयुराङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
5
अ꣣या꣢ वी꣣ती꣡ परि꣢꣯ स्रव꣣ य꣡स्त꣢ इन्दो꣣ म꣢दे꣣ष्वा꣢ । अ꣣वा꣡ह꣢न्नव꣣ती꣡र्नव꣢꣯ ॥१२१०॥
स्वर सहित पद पाठअ꣣या꣢ । वी꣣ती꣢ । प꣡रि꣢꣯ । स्र꣣व । यः꣢ । ते꣣ । इन्दो । म꣡दे꣢꣯षु । आ । अ꣣वा꣡ह꣢न् । अ꣣व । अ꣡ह꣢꣯न् । न꣣वतीः꣢ । न꣡व꣢꣯ ॥१२१०॥
स्वर रहित मन्त्र
अया वीती परि स्रव यस्त इन्दो मदेष्वा । अवाहन्नवतीर्नव ॥१२१०॥
स्वर रहित पद पाठ
अया । वीती । परि । स्रव । यः । ते । इन्दो । मदेषु । आ । अवाहन् । अव । अहन् । नवतीः । नव ॥१२१०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1210
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 5; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 5; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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विषय - प्रथम ऋचा की पूर्वार्चिक में ४९५ क्रमाङ्क पर परमात्मा को सम्बोधन करके व्याख्या की गयी थी। यहाँ वीर मनुष्य को सम्बोधन है।
पदार्थ -
हे (इन्दो) तेज से प्रदीप्त वीर ! तू (अया वीती) इस रीति से (परि स्रव) व्यवहार कर कि (यः) जो मनुष्य (ते मदेषु आ) तेरे वीरताजनित उत्साहों के सम्पर्क में आए, वह (नवनवतीः) नब्बे-नब्बे शत्रु-योद्धाओं के नौ व्यूहों को (अवाहन्) मार गिराए ॥१॥
भावार्थ - वीर सेनापति अपनी सेना के योद्धाओं को इस प्रकार उत्साहित करे कि वे शत्रु योद्धाओं के सैकड़ों भी व्यूहों को क्षण भर में छिन्न-भिन्न कर दें। आन्तरिक देवासुरसङ्ग्राम का सेनापति जीवात्मा भी आन्तरिक शत्रुओं को नष्ट करने के लिए ऐसा ही करे ॥१॥
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