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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1211
ऋषिः - अहमीयुराङ्गिरसः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
5

पु꣡रः꣢ स꣣द्य꣢ इ꣣त्था꣡धि꣢ये꣣ दि꣡वो꣢दासाय꣣ श꣡म्ब꣢रम् । अ꣢ध꣣ त्यं꣢ तु꣣र्व꣢शं꣣ य꣡दु꣢म् ॥१२११॥

स्वर सहित पद पाठ

पु꣡रः꣢꣯ । स꣣द्यः꣢ । स꣣ । द्यः꣢ । इ꣣त्था꣡धि꣢ये । इ꣣त्था꣢ । धि꣣ये । दि꣡वो꣢꣯दासाय । दि꣡वः꣢꣯ । दा꣣साय । श꣡म्ब꣢꣯रम् । शम् । ब꣣रम् । अ꣡ध꣢꣯ । त्यम् । तु꣣र्व꣡श꣢म् । य꣡दु꣢꣯म् ॥१२११॥


स्वर रहित मन्त्र

पुरः सद्य इत्थाधिये दिवोदासाय शम्बरम् । अध त्यं तुर्वशं यदुम् ॥१२११॥


स्वर रहित पद पाठ

पुरः । सद्यः । स । द्यः । इत्थाधिये । इत्था । धिये । दिवोदासाय । दिवः । दासाय । शम्बरम् । शम् । बरम् । अध । त्यम् । तुर्वशम् । यदुम् ॥१२११॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1211
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 5; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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पदार्थ -
हे इन्दु अर्थात् तेज से प्रदीप्त परमात्मन् वा वीरजन ! तुम (इत्थाधिये) सत्यकर्मोंवाले, (दिवोदासाय) विद्या और धर्म के प्रकाश के दाता मनुष्य के हितार्थ (सद्यः) शीघ्र ही (शम्बरम्) शान्ति में विघ्न डालनेवाले शत्रु को, (अध) और (त्यम्) उस (तुर्वशम्) हिंसा करने के इच्छुक शत्रु को तथा (यदुम्) धर्म के फैलने में रुकावट डालनेवाले शत्रु को और (पुरः) उनकी नगरियों को (अवाहन्) नष्ट-भ्रष्ट कर दो [यहाँ ‘अवाहन्’ पद पूर्व मन्त्र से लाया गया है।] ॥२॥

भावार्थ - परमात्मा की कृपा से और वीरों के शौर्यकर्म से सुख, शान्ति, धर्म-कर्म आदि में रुकावट डालनेवाले शत्रुओं की सदा ही पराजय और धार्मिक जनों का उत्कर्ष करना चाहिए ॥२॥ यहाँ सायणाचार्य के मत में दिवोदास नाम का कोई राजा था और यदु, तुर्वश तथा शम्बर उसके विरोधी राजा थे, जिन्हें सोमरस पीकर मस्त हुए इन्द्र ने दिवोदास के हित के लिए वश में कर लिया था। किन्तु यह सङ्गत नहीं है, क्योंकि सृष्टि के आदि में प्रकट हुए वेद में परवर्ती राजाओं आदि का इतिहास नहीं हो सकता, यह सुधी जनों को निश्चय मानना चाहिए ॥

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