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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1228
ऋषिः - कविर्भार्गवः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - जगती स्वरः - निषादः काण्ड नाम -
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ध꣣र्ता꣢ दि꣣वः꣡ प꣢वते꣣ कृ꣢त्व्यो꣣ र꣢सो꣣ द꣡क्षो꣢ दे꣣वा꣡ना꣢मनु꣣मा꣢द्यो꣣ नृ꣡भिः꣢ । ह꣡रिः꣢ सृजा꣣नो꣢꣫ अत्यो꣣ न꣡ सत्व꣢꣯भि꣣र्वृ꣢था꣣ पा꣡जा꣢ꣳसि कृणुषे न꣣दी꣢ष्वा ॥१२२८॥

स्वर सहित पद पाठ

ध꣣र्ता꣢ । दि꣣वः꣢ । प꣣वते । कृ꣡त्व्यः꣢꣯ । र꣡सः꣢꣯ । द꣡क्षः꣢꣯ । दे꣣वा꣡ना꣢म् । अ꣣नुमा꣡द्यः꣢ । अ꣣नु । मा꣡द्यः꣢꣯ । नृ꣡भिः꣢꣯ । ह꣡रिः꣢꣯ । सृ꣣जानः꣢ । अ꣡त्यः꣢꣯ । न । स꣡त्व꣢꣯भिः । वृ꣡था꣢꣯ । पा꣡जा꣢꣯ꣳसि । कृणुषे । नदीषु । आ ॥१२२८॥


स्वर रहित मन्त्र

धर्ता दिवः पवते कृत्व्यो रसो दक्षो देवानामनुमाद्यो नृभिः । हरिः सृजानो अत्यो न सत्वभिर्वृथा पाजाꣳसि कृणुषे नदीष्वा ॥१२२८॥


स्वर रहित पद पाठ

धर्ता । दिवः । पवते । कृत्व्यः । रसः । दक्षः । देवानाम् । अनुमाद्यः । अनु । माद्यः । नृभिः । हरिः । सृजानः । अत्यः । न । सत्वभिः । वृथा । पाजाꣳसि । कृणुषे । नदीषु । आ ॥१२२८॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1228
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 12; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 7; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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पदार्थ -
(दिवः) कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य के प्रकाश का (धर्ता) दाता, (कृत्व्यः) कर्मपरायण, (रसः) रसीला, (देवानाम्) प्रकाशक सूर्य, चन्द्र, अग्नि, विद्युत्, नक्षत्र आदियों को (दक्षः) बल देनेवाला, (नृभिः) मनुष्यों से (अनुमाद्यः) आराधनीय सोम परमेश्वर (पवते) सब जड़-चेतनरूप जगत् को पवित्र करता है। आगे प्रत्यक्षवत् वर्णन है—(हरिः) समुद्र में स्थित जलों को सूर्यकिरणों द्वारा हरकर आकाश में ले जानेवाले आप, हे परमात्मन् ! (सत्त्वभिः) अपने बलों द्वारा (सृजानः) बादलों से वर्षा करते हुए (नदीषु) नदियों में (वृथा) अनायास ही (पाजांसि) वेगों को (कृणुषे) उत्पन्न करते हो, (सृजानः अत्यः न) जैसे जोड़ा जाता हुआ घोड़ा रथ आदि में वेगों को उत्पन्न करता है ॥१॥ यहाँ श्लिष्टोपमा अलङ्कार है ॥१॥

भावार्थ - जड़-चेतनरूप जगत् में जो कुछ भी बल, वेग, विवेक प्रकाश आदि है, वह सब परमात्मा से ही उत्पन्न हुआ है ॥१॥

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