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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1250
ऋषिः - जेता माधुच्छन्दसः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
काण्ड नाम -
6
पु꣣रां꣢ भि꣣न्दु꣡र्युवा꣢꣯ क꣣वि꣡रमि꣢꣯तौजा अजायत । इ꣢न्द्रो꣣ वि꣡श्व꣢स्य꣣ क꣡र्म꣢णो ध꣣र्त्ता꣢ व꣣ज्री꣡ पु꣢रुष्टु꣣तः꣢ ॥१२५०॥
स्वर सहित पद पाठपु꣣रा꣢म् । भि꣣न्दुः꣢ । यु꣡वा꣢꣯ । क꣣विः꣢ । अ꣡मि꣢꣯तौजाः । अ꣡मि꣢꣯त । ओ꣣जाः । अजायत । इ꣡न्द्रः꣢꣯ । वि꣡श्व꣢꣯स्य । क꣡र्म꣢꣯णः । ध꣣र्त्ता꣢ । व꣣ज्री꣢ । पु꣣रुष्टुतः꣢ । पु꣣रु । स्तुतः꣢ ॥१२५०॥
स्वर रहित मन्त्र
पुरां भिन्दुर्युवा कविरमितौजा अजायत । इन्द्रो विश्वस्य कर्मणो धर्त्ता वज्री पुरुष्टुतः ॥१२५०॥
स्वर रहित पद पाठ
पुराम् । भिन्दुः । युवा । कविः । अमितौजाः । अमित । ओजाः । अजायत । इन्द्रः । विश्वस्य । कर्मणः । धर्त्ता । वज्री । पुरुष्टुतः । पुरु । स्तुतः ॥१२५०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1250
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 20; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 9; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 20; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 9; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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विषय - प्रथम ऋचा की व्याख्या पूर्वार्चिक में ३५९ क्रमाङ्क पर परमेश्वर, राजा, सेनापति और सूर्य के विषय में की जा चुकी है। यहाँ जीवात्मा का विषय कहते हैं।
पदार्थ -
(इन्द्रः) यह देहधारी जीवात्मा (पुराम्) शत्रु-नगरियों का (भिन्दुः) भेदन करनेवाला, (युवा) यौवन-सम्पन्न, (कविः) क्रान्तदर्शी, (अमितौजाः) अपरिमित बलवाला, (विश्वस्य) सब (कर्मणः) क्रियाकाण्ड का (धर्ता) धारणकर्त्ता, (वज्री) शस्त्रास्त्रों को हाथ में लेनेवाला और (पुरुष्टुतः) बहु-स्तुत (अजायत) हुआ है ॥१॥
भावार्थ - जीवात्मा में अपूर्व शक्ति निहित है। अपनी शक्ति को पहचानकर वह महान् से महान् कर्मों को कर सकता है ॥१॥
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