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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1251
ऋषिः - जेता माधुच्छन्दसः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
काण्ड नाम -
5
त्वं꣢ व꣣ल꣢स्य꣣ गो꣢म꣣तो꣡ऽपा꣢वरद्रिवो꣣ बि꣡ल꣢म् । त्वां꣢ दे꣣वा꣡ अबि꣢꣯भ्युषस्तु꣣ज्य꣡मा꣢नास आविषुः ॥१२५१॥
स्वर सहित पद पाठत्वम् । व꣣ल꣡स्य꣢ । गो꣡म꣢꣯तः । अ꣡प꣢꣯ । अ꣣वः । अद्रिवः । अ । द्रिवः । बि꣡ल꣢꣯म् । त्वाम् । दे꣣वाः꣢ । अ꣡बि꣢꣯भ्युषः । अ । बि꣣भ्युषः । तुज्य꣡मा꣢नासः । आ꣣विषुः ॥१२५१॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वं वलस्य गोमतोऽपावरद्रिवो बिलम् । त्वां देवा अबिभ्युषस्तुज्यमानास आविषुः ॥१२५१॥
स्वर रहित पद पाठ
त्वम् । वलस्य । गोमतः । अप । अवः । अद्रिवः । अ । द्रिवः । बिलम् । त्वाम् । देवाः । अबिभ्युषः । अ । बिभ्युषः । तुज्यमानासः । आविषुः ॥१२५१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1251
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 20; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 9; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 20; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 9; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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विषय - अगले मन्त्र में परमेश्वर और जीवात्मा को सम्बोधन है।
पदार्थ -
हे (अद्रिवः) अविनश्वर परमेश्वर वा जीवात्मन् ! (त्वम्) तुम (गोमतः) जिसने सत्त्वगुण के प्रकाश को बन्द कर रखा है, ऐसे (वलस्य) आच्छादक तमोगुण की (बिलम्) गुफा को (अपावः) तोड़कर खोल देते हो। (तुज्यमानासः) हिंसा किये जाते हुए (देवाः) प्रकाशक मन, बुद्धि सहित ज्ञानेन्द्रियाँ वा विद्वान् लोग (अबिभ्युषः) भयभीत न होते हुए (त्वाम्) तुझ परमात्मा वा जीवात्मा की (आविषुः) शरण में जाते हैं ॥२॥
भावार्थ - मन में तमोगुण की अधिकता हो जाने से जब सत्त्वगुण निर्बल हो जाता है, तब तमोगुण प्रकाश को रोक लेता है। वह आवरण परमात्मा की प्रेरणा से और जीवात्मा के पुरुषार्थ से तोड़ा जा सकता है ॥२॥
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