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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1252
ऋषिः - जेता माधुच्छन्दसः देवता - इन्द्रः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः काण्ड नाम -
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इ꣢न्द्र꣣मी꣡शा꣢न꣣मो꣡ज꣢सा꣣भि꣡ स्तोमै꣢꣯रनूषत । स꣣ह꣢स्रं꣣ य꣡स्य꣢ रा꣣त꣡य꣢ उ꣣त꣢ वा꣣ स꣢न्ति꣣ भू꣡य꣢सीः ॥१२५२॥

स्वर सहित पद पाठ

इ꣡न्द्र꣢꣯म् । ई꣡शा꣢꣯नम् । ओ꣡ज꣢꣯सा । अ꣣भि꣡ । स्तो꣡मैः꣢꣯ । अ꣣नूषत । स꣣ह꣡स्र꣢म् । य꣡स्य꣢꣯ । रा꣣त꣡यः꣢ । उ꣣त꣢ । वा꣣ । स꣡न्ति꣢꣯ । भू꣡य꣢꣯सीः ॥१२५२॥


स्वर रहित मन्त्र

इन्द्रमीशानमोजसाभि स्तोमैरनूषत । सहस्रं यस्य रातय उत वा सन्ति भूयसीः ॥१२५२॥


स्वर रहित पद पाठ

इन्द्रम् । ईशानम् । ओजसा । अभि । स्तोमैः । अनूषत । सहस्रम् । यस्य । रातयः । उत । वा । सन्ति । भूयसीः ॥१२५२॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1252
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 20; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 9; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
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पदार्थ -
(ओजसा) बल वा प्रताप से (ईशानम्) जगत् के वा शरीर के शासक (इन्द्रम्) परमेश्वर वा जीवात्मा की सब लोग (स्तोमैः) उनके गुणवर्णन करनेवाले स्तोत्रों से (अभि अनूषत) स्तुति करते हैं, (यस्य) जिस परमेश्वर वा जीवात्मा के (सहस्रम्) हजार (उत वा) अथवा (भूयसीः) उससे भी अधिक (रातयः) दान (सन्ति) हैं ॥३॥

भावार्थ - सबको योग्य है कि परमेश्वर की उपासना करके और जीवात्मा को उद्बोधन देकर उनके दानों को प्राप्त करें ॥३॥ इस खण्ड में परमात्मा, जीवात्मा और राजा का वर्णन होने से इस खण्ड की पूर्व खण्ड के साथ सङ्गति है ॥ नवम अध्याय में अष्टम खण्ड समाप्त ॥ नवम अध्याय समाप्त ॥ पञ्चम प्रपाठक में प्रथम अर्ध समाप्त ॥

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