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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1253
ऋषिः - पराशरः शाक्त्यः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
काण्ड नाम -
5
अ꣡क्रा꣢न्त्समु꣣द्रः꣡ प्र꣢थ꣣मे꣡ वि꣢꣫धर्म꣣न् ज꣡न꣢य꣣न्प्र꣡जा भु꣢꣯वनस्य꣣ गो꣢पाः । वृ꣡षा꣢ प꣣वि꣢त्रे꣣ अ꣢धि꣣ सा꣢नो꣣ अ꣡व्ये꣢ बृ꣣ह꣡त्सोमो꣢꣯ वावृधे स्वा꣣नो꣡ अद्रिः꣢꣯ ॥१२५३॥
स्वर सहित पद पाठअ꣡क्रा꣢꣯न् । स꣣मुद्रः꣢ । स꣣म् । उद्रः꣢ । प्र꣣थमे꣢ । वि꣡ध꣢꣯र्मन् । वि । ध꣣र्मन् । जन꣡य꣢न् । प्र꣣जाः꣢ । प्र꣣ । जाः꣢ । भु꣡व꣢꣯नस्य । गो꣣पाः꣢ । गो꣣ । पाः꣢ । वृ꣡षा꣢꣯ । प꣣वि꣡त्रे꣢ । अ꣡धि꣢꣯ । सा꣡नौ꣢꣯ । अ꣡व्ये꣢꣯ । बृ꣣ह꣢त् । सो꣡मः꣢꣯ । वा꣣वृधे । स्वानः꣢ । अ꣡द्रिः꣢꣯ । अ । द्रिः꣣ ॥१२५३॥
स्वर रहित मन्त्र
अक्रान्त्समुद्रः प्रथमे विधर्मन् जनयन्प्रजा भुवनस्य गोपाः । वृषा पवित्रे अधि सानो अव्ये बृहत्सोमो वावृधे स्वानो अद्रिः ॥१२५३॥
स्वर रहित पद पाठ
अक्रान् । समुद्रः । सम् । उद्रः । प्रथमे । विधर्मन् । वि । धर्मन् । जनयन् । प्रजाः । प्र । जाः । भुवनस्य । गोपाः । गो । पाः । वृषा । पवित्रे । अधि । सानौ । अव्ये । बृहत् । सोमः । वावृधे । स्वानः । अद्रिः । अ । द्रिः ॥१२५३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1253
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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विषय - प्रथम ऋचा की व्याख्या पूर्वार्चिक में ५२९ क्रमाङ्क पर परमात्मा और मेघ के विषय में की जा चुकी है। यहाँ फिर परमात्मा का ही विषय वर्णित करते हैं।
पदार्थ -
इसी सोम परमात्मा के शासन में (समुद्रः) सूर्य (परमे) उच्च, (विधर्मणि) विशेष धारणकर्ता द्युलोक में (अक्रान्) अपनी धुरी पर घूमता है, जो सूर्य (प्रजाः जनयन्) प्रजाओं को उत्पन्न करता हुआ (भुवनस्य) सौरमण्डल का (गोपाः) रक्षक है। (पवित्रे) अन्तरिक्ष में और (अव्ये सानौ अधि) पृथिवी के उन्नत प्रदेश में (वृषा) वर्षा करनेवाला, (स्वानः) भूमि आदि लोकों को उनकी अपनी-अपनी कक्षा में सूर्य के चारों ओर प्रेरित करता हुआ (अद्रिः) अविनश्वर (सोमः) जगत्स्रष्टा (बृहत्) बहुत अधिक (वावृधे) महिमा को प्राप्त हुआ है ॥१॥
भावार्थ - परमेश्वर ही अपनी महिमा से सूर्य को और उसके चारों ओर भूमि, चन्द्रमा आदि ग्रह-उपग्रहों को घुमा रहा है ॥१॥
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