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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1278
ऋषिः - राहूगण आङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
5
ए꣣ष꣢꣫ स्य पी꣣त꣡ये꣢ सु꣣तो꣡ हरि꣢꣯रर्षति धर्ण꣣सिः꣢ । क्र꣢न्द꣣न्यो꣡नि꣢म꣣भि꣢ प्रि꣣य꣢म् ॥१२७८॥
स्वर सहित पद पाठए꣣षः꣢ । स्यः । पी꣣त꣡ये꣢ । सु꣣तः꣢ । ह꣣रिः꣢꣯ । अ꣣र्षति । धर्णसिः꣢ । क्र꣡न्द꣢꣯न् । यो꣡नि꣢꣯म् । अ꣣भि꣢ । प्रि꣣य꣢म् ॥१२७८॥
स्वर रहित मन्त्र
एष स्य पीतये सुतो हरिरर्षति धर्णसिः । क्रन्दन्योनिमभि प्रियम् ॥१२७८॥
स्वर रहित पद पाठ
एषः । स्यः । पीतये । सुतः । हरिः । अर्षति । धर्णसिः । क्रन्दन् । योनिम् । अभि । प्रियम् ॥१२७८॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1278
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 5
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 5
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 5
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 5
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विषय - अगले मन्त्र में जीवात्मा का शरीर में जन्म वर्णित है।
पदार्थ -
(एषः स्यः) यह वह (धर्णसिः) देह को धारण करनेवाला (हरिः) जीवात्मा (पीतये) कर्मफलों का स्वाद लेने के लिए (सुतः) उत्पन्न किया हुआ (क्रन्दन्) क्रन्दन करता हुआ (प्रियं योनिम् अभि) जन्म में कारणभूत प्रिय माता-पिता की ओर (अर्षति) जाता है ॥५॥
भावार्थ - माता के गर्भ में दस महीने तक लेटा रहा शिशु बाहर निकल कर कर्मफलों का भोग करता हुआ और श्रेष्ठ नवीन कर्म करता हुआ उन्नति करे ॥५॥
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