Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1300
ऋषिः - पवित्र आङ्गिरसो वा वसिष्ठो वा उभौ वा
देवता - पवमानाध्येता
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
काण्ड नाम -
5
पा꣣वमानीः꣢ स्व꣣स्त्य꣡य꣢नीः सु꣣दु꣢घा꣣ हि꣡ घृ꣢त꣣श्चु꣡तः꣢ । ऋ꣡षि꣢भिः꣣ सं꣡भृ꣢तो꣣ र꣡सो꣢ ब्राह्म꣣णे꣢ष्व꣣मृ꣡त꣢ꣳ हि꣣त꣢म् ॥१३००
स्वर सहित पद पाठपा꣣वमानीः꣢ । स्व꣣स्त्य꣡य꣢नीः । स्व꣣स्ति । अ꣡यनीः꣢꣯ । सु꣣दु꣡घाः꣢ । सु꣣ । दु꣡घाः꣢꣯ । हि । घृ꣣तश्चु꣡तः꣢ । घृ꣣त । श्चु꣡तः꣢꣯ । ऋ꣡षि꣢꣯भिः । स꣡म्भृ꣢꣯तः । सम् । भृ꣣तः । र꣡सः꣢꣯ । ब्रा꣣ह्मणे꣡षु꣢ । अ꣣मृ꣡त꣢म् । अ꣣ । मृ꣡त꣢꣯म् । हि꣣त꣢म् ॥१३००॥
स्वर रहित मन्त्र
पावमानीः स्वस्त्ययनीः सुदुघा हि घृतश्चुतः । ऋषिभिः संभृतो रसो ब्राह्मणेष्वमृतꣳ हितम् ॥१३००
स्वर रहित पद पाठ
पावमानीः । स्वस्त्ययनीः । स्वस्ति । अयनीः । सुदुघाः । सु । दुघाः । हि । घृतश्चुतः । घृत । श्चुतः । ऋषिभिः । सम्भृतः । सम् । भृतः । रसः । ब्राह्मणेषु । अमृतम् । अ । मृतम् । हितम् ॥१३००॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1300
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 8; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 7; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 8; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 7; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
Acknowledgment
विषय - आगे फिर वेद के अध्ययन का ही फल वर्णित है।
पदार्थ -
(पावमानीः) पवमान देवतावाली ऋचाएँ (हि) निश्चय ही (स्वस्त्ययनीः) कल्याण प्राप्त करानेवाली, (सुदुघाः) मधुर दूध देनेवाली और (घृतश्चुतः) घी चुआनेवाली होती हैं। इनके अध्ययन से (ऋषिभिः) वेदरहस्यवेत्ता ऋषिजन (रसः) आनन्द-रस को (संभृतः) आस्वादन करते हैं और (ब्राह्मणेषु) वेदपाठी ब्राह्मणों को (अमृतम्) दुःखमोक्षरूप अमृतत्व (हितम्) प्राप्त होता है ॥३॥ यहाँ ‘सुदुघाः’ और ‘घृतश्चुतः’ इन शब्दों के अर्थ से पावमानी ऋचाएँ दुधारू गायें हैं, यह व्यङ्ग्यार्थ निकलता है ॥३॥
भावार्थ - वेदों के अध्ययन से कर्मयोगी होकर लोग सब लौकिक और आध्यात्मिक सम्पदा प्राप्त कर लेते हैं ॥३॥
इस भाष्य को एडिट करें