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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1311
ऋषिः - शतं वैखानसाः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
4
प꣣व꣢मानो र꣣थी꣡त꣢मः शु꣣भ्रे꣡भिः꣢ शु꣣भ्र꣡श꣢स्तमः । ह꣡रि꣢श्चन्द्रो म꣣रु꣡द्ग꣢णः ॥१३११॥
स्वर सहित पद पाठप꣡व꣢꣯मानः । र꣣थी꣡त꣢मः । शु꣣भ्रे꣡भिः꣢ । शु꣣भ्र꣡श꣢स्तमः । शु꣣भ्र꣢ । श꣣स्तमः । ह꣡रि꣢꣯श्चन्द्रः । ह꣡रि꣢꣯ । च꣣न्द्रः । मरु꣡द्ग꣢णः । म꣣रु꣢त् । ग꣣णः ॥१३११॥
स्वर रहित मन्त्र
पवमानो रथीतमः शुभ्रेभिः शुभ्रशस्तमः । हरिश्चन्द्रो मरुद्गणः ॥१३११॥
स्वर रहित पद पाठ
पवमानः । रथीतमः । शुभ्रेभिः । शुभ्रशस्तमः । शुभ्र । शस्तमः । हरिश्चन्द्रः । हरि । चन्द्रः । मरुद्गणः । मरुत् । गणः ॥१३११॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1311
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 9; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 9; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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विषय - अगले मन्त्र में परमात्मा के गुणों का वर्णन है।
पदार्थ -
(पवमानः) पवित्रकर्ता जगत्स्रष्टा परमेश्वर (रथीतमः) रथियों में श्रेष्ठ, (शुभ्रेभिः) शुभ्र गुण-कर्मों से (शुभ्रशस्तमः) अतिशय निर्मल यशवाला, (हरिश्चन्द्रः) मनोहर आह्लाद देनेवाला और (मरुद्गणः) प्राण-रूप या पवन-रूप गणोंवाला है ॥२॥
भावार्थ - सूर्य, चाँद, पवन, बिजली आदि और मानव-शरीर जिसके बनाये हुए रथ हैं, ऐसे अत्यन्त यशस्वी, परमानन्ददायक, प्राण आदि को चलानेवाले परमेश्वर का ज्ञान सबको पाना चाहिए ॥२॥
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