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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1312
ऋषिः - शतं वैखानसाः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
प꣡व꣢मान꣣꣬ व्य꣢꣯श्नुहि र꣣श्मि꣡भि꣢र्वाज꣣सा꣡त꣢मः । द꣡ध꣢त्स्तो꣣त्रे꣢ सु꣣वी꣡र्य꣢म् ॥१३१२
स्वर सहित पद पाठप꣡व꣢꣯मान । वि । अ꣣श्नुहि । रश्मि꣡भिः꣢ । वा꣣जसा꣡त꣢मः । वा꣣ज । सा꣡त꣢꣯मः । द꣡ध꣢꣯त् । स्तो꣣त्रे꣢ । सु꣣वी꣡र्य꣢म् । सु꣣ । वी꣢र्य꣢꣯म् ॥१३१२॥
स्वर रहित मन्त्र
पवमान व्यश्नुहि रश्मिभिर्वाजसातमः । दधत्स्तोत्रे सुवीर्यम् ॥१३१२
स्वर रहित पद पाठ
पवमान । वि । अश्नुहि । रश्मिभिः । वाजसातमः । वाज । सातमः । दधत् । स्तोत्रे । सुवीर्यम् । सु । वीर्यम् ॥१३१२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1312
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 9; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 9; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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विषय - अगले मन्त्र में परमात्मा से प्रार्थना करते हैं।
पदार्थ -
हे (पवमान) पवित्रकर्ता सोम परमात्मन् ! (वाजसातमः) अत्यधिक बल को देनेवाले आप (स्तोत्रे) मुझ उपासक को (सुवीर्यम्) सुवीर्य से युक्त गुण-समूह (दधत्) प्रदान करते हुए (रश्मिभिः) तेज की किरणों के साथ (व्यश्नुहि) प्राप्त होओ ॥३॥
भावार्थ - जगदीश्वर का स्तोता उससे तेज, बल, वीर्य, सत्य, अहिंसा, न्याय, दया, उदारता आदि प्राप्त करके अतिशय कीर्तिशाली हो जाता है ॥३॥
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