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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1313
ऋषिः - सप्तर्षयः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - बार्हतः प्रगाथः (विषमा बृहती, समा सतोबृहती)
स्वरः - मध्यमः
काण्ड नाम -
7
प꣢री꣣तो꣡ षि꣢ञ्चता सु꣣त꣢꣫ꣳ सोमो꣣ य꣡ उ꣢त्त꣣म꣢ꣳ ह꣣विः꣢ । द꣣धन्वा꣡ꣳ यो नर्यो꣢꣯ अ꣣प्स्वा꣢३꣱न्त꣢꣫रा सु꣣षा꣢व꣣ सो꣢म꣣म꣡द्रि꣢भिः ॥१३१३
स्वर सहित पद पाठप꣡रि꣢꣯ । इ꣣तः꣢ । सि꣣ञ्चत । सुत꣢म् । सो꣡मः꣢꣯ । यः । उ꣣त्तम꣢म् । ह꣣विः꣢ । द꣣धन्वा꣢न् । यः । न꣡र्यः꣢꣯ । अ꣣प्सु꣢ । अ꣣न्तः꣢ । आ । सु꣣षा꣡व꣢ । सो꣡म꣢꣯म् । अ꣡द्रि꣢꣯भिः । अ । द्रि꣣भिः ॥१३१३॥
स्वर रहित मन्त्र
परीतो षिञ्चता सुतꣳ सोमो य उत्तमꣳ हविः । दधन्वाꣳ यो नर्यो अप्स्वा३न्तरा सुषाव सोममद्रिभिः ॥१३१३
स्वर रहित पद पाठ
परि । इतः । सिञ्चत । सुतम् । सोमः । यः । उत्तमम् । हविः । दधन्वान् । यः । नर्यः । अप्सु । अन्तः । आ । सुषाव । सोमम् । अद्रिभिः । अ । द्रिभिः ॥१३१३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1313
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 12; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 9; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 12; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 9; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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विषय - प्रथम ऋचा की व्याख्या पूर्वार्चिक में ५१२ क्रमाङ्क पर सोमरस के पक्ष में और भक्तिरस के विषय में की जा चुकी है। यहाँ ब्रह्मानन्द-रस का विषय वर्णित करते हैं।
पदार्थ -
हे मनुष्यो ! तुम (इतः) इस रसमय परमात्मा-रूप सोम में से (सुतम्) निकले हुए आनन्द-रस को (परि सिञ्चत) चारों ओर बरसाओ, (यः सोमः) जो रस का भण्डार परमात्मा (उत्तमं हविः) सबसे अधिक उत्कृष्ट ग्राह्य वस्तु है, (नर्यः) मनुष्यों का हित करनेवाला (यः) जो सोम परमात्मा (दधन्वान्) उपासकों को सहारा देनेवाला होता है और जिस (सोमम्) रसनिधि परमात्मा को, उपासक (अद्रिभिः) ध्यानरूप सिलबट्टों से (अप्सु अन्तः) प्राणों के अन्दर (आ सुषाव) अभिषुत करता है ॥१॥
भावार्थ - उपासकों को चाहिए कि परब्रह्म के पास से परमानन्द प्राप्त करके उसे दूसरों के लिए भी बरसाएँ ॥१॥
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