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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1335
ऋषिः - अहमीयुराङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
5
उ꣢पो꣣ षु꣢ जा꣣त꣢म꣣प्तु꣢रं꣣ गो꣡भि꣢र्भ꣣ङ्गं꣡ परि꣢꣯ष्कृतम् । इ꣡न्दुं꣢ दे꣣वा꣡ अ꣢यासिषुः ॥१३३५॥
स्वर सहित पद पाठउ꣡प꣢꣯ । उ꣣ । सु꣢ । जा꣣त꣢म् । अ꣣प्तु꣡र꣢म् । गो꣡भिः꣢꣯ । भ꣣ङ्ग꣢म् । प꣡रि꣢꣯ष्कृतम् । प꣡रि꣢꣯ । कृ꣣तम् । इ꣡न्दु꣢꣯म् । दे꣣वाः꣢ । अ꣣यासिषुः ॥१३३५॥
स्वर रहित मन्त्र
उपो षु जातमप्तुरं गोभिर्भङ्गं परिष्कृतम् । इन्दुं देवा अयासिषुः ॥१३३५॥
स्वर रहित पद पाठ
उप । उ । सु । जातम् । अप्तुरम् । गोभिः । भङ्गम् । परिष्कृतम् । परि । कृतम् । इन्दुम् । देवाः । अयासिषुः ॥१३३५॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1335
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 20; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 11; सूक्त » 5; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 20; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 11; सूक्त » 5; मन्त्र » 1
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विषय - प्रथम ऋचा की व्याख्या पूर्वार्चिक में ४८७ क्रमाङ्क पर परमात्मा की प्राप्ति के विषय में और उत्तरार्चिक में ७६२ क्रमाङ्क पर जीवात्मा तथा राजा के विषय में की जा चुकी है। यहाँ परमात्मा और चन्द्रमा का विषय वर्णित करते हैं।
पदार्थ -
प्रथम—परमात्मा के पक्ष में। (सुजातम्) सुप्रसिद्ध, (अप्तुरम्) व्यापक चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र आदि लोकों को वेग से चलानेवाले, (गोभिः) वेद-वाणियों से (भङ्गम्) काम, क्रोध आदि रिपुओं के भञ्जक, (परिष्कृतम्) गुणों से अलङ्कृत, (इन्दुम्) तेज से दीप्त वा आनन्द-रसों से भिगोनेवाले परमात्मा को (देवाः) विद्वान् लोग वा आत्मा, मन, बुद्धि, प्राण आदि बल की प्राप्ति के लिए (उप उ अयासिषुः) प्राप्त करते हैं ॥ द्वितीय—चन्द्रमा के पक्ष में (सुजातम्) पृथिवी के सुपुत्र, (अप्तुरम्) अन्तरिक्ष में पृथिवी और सूर्य के चारों ओर दौड़नेवाले, (गोभिः भङ्गम्) कहीं भूमियों में दरार पड़े हुए और कहीं (परिष्कृतम्) परिष्कृत अर्थात् समतल (इन्दुम्) चन्द्रमा को (देवाः) सूर्य-किरणें (अयासिषुः) प्रकाशित करने के लिए प्राप्त करती हैं ॥१॥ इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है ॥१॥
भावार्थ - जैसे सब जड़ पदार्थ और चेतन प्राणी जगदीश्वर के आश्रय से रहते हैं, वैसे ही हमारे सौर लोक के मङ्गल, बुध, पृथिवी, चन्द्रमा आदि ग्रह-उपग्रह सूर्य के आश्रय से रहते हैं और सूर्य भी जगदीश्वर के अधीन है ॥१॥
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