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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1343
ऋषिः - गोतमो राहूगणः देवता - इन्द्रः छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः काण्ड नाम -
5

क꣣दा꣡ मर्त꣢꣯मरा꣣ध꣡सं꣢ प꣣दा꣡ क्षुम्प꣢꣯मिव स्फुरत् । क꣣दा꣡ नः꣢꣯ शुश्रव꣣द्गि꣢र꣣ इ꣡न्द्रो꣢ अ꣣ङ्ग꣢ ॥१३४३॥

स्वर सहित पद पाठ

क꣣दा꣢ । म꣡र्त꣢꣯म् । अ꣣राध꣡स꣢म् । अ꣣ । राध꣡स꣢म् । प꣣दा꣢ । क्षु꣡म्प꣢꣯म् । इ꣡व । स्फुरत् । कदा꣢ । नः꣣ । शुश्रवत् । गि꣡रः꣢꣯ । इ꣡न्द्रः꣢꣯ । अ꣣ङ्ग꣢ ॥१३४३॥


स्वर रहित मन्त्र

कदा मर्तमराधसं पदा क्षुम्पमिव स्फुरत् । कदा नः शुश्रवद्गिर इन्द्रो अङ्ग ॥१३४३॥


स्वर रहित पद पाठ

कदा । मर्तम् । अराधसम् । अ । राधसम् । पदा । क्षुम्पम् । इव । स्फुरत् । कदा । नः । शुश्रवत् । गिरः । इन्द्रः । अङ्ग ॥१३४३॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1343
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 22; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 12; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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पदार्थ -
(अङ्ग) हे भद्र ! (इन्द्रः) वीर परमेश्वर वा वीर राजा आप (कदा) कब (अराधसम्) समाज-सेवा न करनेवाले स्वार्थपरायण (मर्तम्) मनुष्य को (पदा) पैर से (क्षुम्पम् इव) खुम्भ के समान (स्फुरत्) विचलित कर दोगे, (कदा) कब (नः) हमें (गिरः) अपनी सन्देश-वाणियाँ (शुश्रवत्) सुनाओगे ॥३॥ यहाँ उपमालङ्कार है ॥३॥

भावार्थ - परमात्मा के समान राजा भी दुष्टों को दण्डित करे और सज्जनों की वाणियाँ सुने तथा अपनी रमणीय, उपदेशप्रद वाणियाँ उन्हें सुनाये ॥३॥

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