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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1344
ऋषिः - मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः काण्ड नाम -
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गा꣡य꣢न्ति त्वा गाय꣣त्रि꣡णोऽर्च꣢꣯न्त्य꣣र्क꣢म꣣र्कि꣡णः꣢ । ब्र꣣ह्मा꣡ण꣢स्त्वा शतक्रत꣣ उ꣢द्व꣣ꣳश꣡मि꣢व येमिरे ॥१३४४॥

स्वर सहित पद पाठ

गा꣡य꣢꣯न्ति । त्वा꣣ । गायत्रि꣡णः꣢ । अ꣡र्च꣢꣯न्ति । अ꣣र्क꣢म् । अ꣣र्कि꣡णः꣢ । ब्र꣣ह्मा꣡णः꣢ । त्वा꣣ । शतक्रतो । शत । क्रतो । उ꣢त् । व꣣ꣳश꣢म् । इ꣣व । येमिरे ॥१३४४॥


स्वर रहित मन्त्र

गायन्ति त्वा गायत्रिणोऽर्चन्त्यर्कमर्किणः । ब्रह्माणस्त्वा शतक्रत उद्वꣳशमिव येमिरे ॥१३४४॥


स्वर रहित पद पाठ

गायन्ति । त्वा । गायत्रिणः । अर्चन्ति । अर्कम् । अर्किणः । ब्रह्माणः । त्वा । शतक्रतो । शत । क्रतो । उत् । वꣳशम् । इव । येमिरे ॥१३४४॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1344
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 23; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 12; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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पदार्थ -
हे (शतक्रतो) असंख्यात कर्मों वा प्रज्ञाओंवाले जगदीश्वर ! (त्वा) गाये जाने योग्य आपकी (गायत्रिणः) जिन्होंने वेदों के गायत्री आदि प्रशस्त छन्दों का अध्ययन किया हुआ है, ऐसे धार्मिक ईश्वरोपासक लोग (गायन्ति) सामवेद आदि के गान द्वारा प्रशंसा करते हैं। (अर्किणः) वेदमन्त्र जिनके ज्ञान के साधन हैं, ऐसे लोग (अर्कम्) सब जनों के पूजनीय आपकी (अर्चन्ति) नित्य पूजा करते हैं। (ब्रह्माणः) वेदार्थों को जानकर तदनुसार कर्म करनेवाले विद्वान् लोग (त्वा) जगत् के रचयिता आपको (उद्येमिरे) अपने प्रति उद्यमवान् करते हैं, (वंशम् इव) जैसे उत्कृष्ट गुणों और शिक्षाओं से लोग अपने कुल को (उद् येमिरे) उद्यमी बनाते हैं ॥१॥३ यहाँ उपमालङ्कार है ॥१॥

भावार्थ - सब मनुष्यों को चाहिए कि वे परमेश्वर का ही गान और पूजन करें, क्योंकि उसके तुल्य या उससे अधिक अन्य कोई नहीं हैं ॥१॥

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